Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥४२॥
पद्म || रूप समुद्रकर आयाथा सो भयखाय दस घोड़ोंके असवारोंसे भागा तब श्रीरामने आज्ञाकरी ये नपुंसक |
युद्धसे पराङ्मुख होय भागे अब इनके मारनेसे क्या तब लक्ष्मण भाईसहित पीछे बाहुडे वे म्लेछ भय से व्याकुलहोय संह्याचल विन्ध्याचलके बनोंमें छिप गए श्रीरामचन्द्रके भयसे पशु हिंसादिक दुष्ट कर्म को तज बन फलोंका आहार करें जैसे गरुड़से सर्प डरे तैसे श्रीरामसे डरतेभए । लक्ष्मणसहित श्रीराम ने शांतह स्वरूप जिनका राजा जनकको बहुत प्रसन्न कर विदा किया और श्राप पिता के समीप अयोध्याको चले सर्व पृथ्वीके लोक आश्चर्यको प्राप्तभए यह सबको परम आनन्द उपजा परम हर्ष मान रोमांचहोय आए । रामके प्रभावसे सब पृथ्वी विभूतिसेशेभायमानभई जैसे चतुर्थकालके आदि अषभदेवके समय सम्पदासे शोभायमान भईथी धर्म अर्थ कामकर युक्त जे पुरुष तिनसे जगत ऐसा भासताभया जैसे बर्फके अवरोधकर वर्जित जे नक्षत्र तिनसे आकाश शोभे ।गौतमस्वामी कहे हे हे राजा श्रेणिक ऐसा रामका माहात्म्य देखकर जनकने अपनी पुत्री सीताको रामको देनी बिचारी बहुत कहनेसे क्या जीवोंके संयोग अथवा वियोगका कारणभाव एक कर्म का उदयही है सो वह श्रीराम श्रेष्ठ पुरुष महासौभाग्यवन्त अतिप्रतापीऔरनमें न पाइये ऐसे गुणोंकर पृथिवीमें प्रसिद्ध होता भया जैसे किरणोंके समूहकर सूर्य महिमा को प्राप्त होय ॥ इति सत्ताईसवां पर्व सम्पूर्णम् ।
अथानन्तर ऐसे पराक्रमकर पूर्ण जो राम तिनकी कथा बिना नारद एकक्षणभी न रहे सदागम कथा करवोही करें कैसाहै नारद रामके यश सुनकर उपजाहै परम आश्चर्य जिसको फिर नारदने सुनी | जो जनकने रामको जानकी देनी विचारी कैसी है जानकी सर्व पृथिवीमें प्रकटहै महिमा जिन की
For Private and Personal Use Only