Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म पुराव
४४०॥
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को गये राजा दशरथ और राजा दशरथके चारों पुत्र रामकी स्त्री सीता भरतकी स्त्री लोकसुन्दरी महा उत्सवसे अयोध्या के निकट आये कैसे हैं दशरथके पुल सकल पृथिवीपर प्रसिद्ध है कीर्ति जिनकी और परमरूप परमगुण सोईभया समुद्र उसमें मग्नहैं और परम रत्नोंके आभूषण से शोभितहें शरीर जिनके माता पिताको उपजाया है महाहर्षं जिन्होंने नानाप्रकारके बाहन उनकर पूर्ण जो सेना सोईभया सागर जहाँ 'अनेक प्रकारके वादित्र बाजे हैं जैसे जल निघि गाजें ऐसी सेना सहित राजा मार्ग मार्ग होय महिल पधारे और कनककी पुत्री को सबही देखे हैं सो देख२ अति हर्षित होयहैं और कहे हैं इनकी तुल्य की और कोई नहीं यह उत्तम शरीर को घरे हैं इनके देखनेको नगरके नर नारी मार्ग में चाय इकट्ठेभये तिन मार्ग अति संकीर्णभया नगरके दरवाजेसे ले रोजा महिल परियन्त मनुष्योंका पारनहीं, किया है समस्त जनने यावर जिनका ऐसे दशरथके पुत्र इनके श्रेष्ठ गुणों की ज्यों ज्यों लोक स्तुति करें त्योंत्यों ये नीचे २ हो रहें महासुख भोगनहारे ये चारोंही भाई अपने २ महिलमें श्रानन्दसों विराजे यह सब शुभ कर्म का फल विवेकी जन जानकर ऐसे सुकृत करो जिससे सूर्य से अधिक प्रभाव होय । जेते शोभायमान उत्कृष्ट फल हैं वे सर्व धर्म के प्रभाव से हैं और जे महानिन्द्य कटुक फल हैं वे सब पाप कर्म के उदय से हैं इसलिये सुख पाप कियाको तजो और शुभ क्रिया करो || इति श्रष्ठाईसवां पर्व सम्पूर्णम् ।
अथानन्तर आषाढ़ शुक्ल अष्टमी से अष्टान्हिका का महा उत्सवभया राजा दशरथ जिनेन्द्र की महाउत्कृष्ट पूजा करनेको उद्यमीभया राजा धर्म में अतिसावधान है राजाकी सर्व राणी पुत्र बांधव तथासकल कुटम् जिन राजके प्रतिबिम्बोंकी महा पूजा करनेको उद्यमी भए केई बहुत यादरसे पंच वर्णके जे रत्न विन
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