Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पा
के चूका माडला मांडे हैं केई नानाप्रकार के रत्नों की माला बन्भवे हैं । भक्तिसे पाया है अधिकार जिन्हों ने और कई एला (इलायची) कर्पूरादि सुगन्ध द्रव्यों से जलको सुगन्धकरे हैं और केई सुगन्ध जलसे पृथ्वी ४४१ को छांटे हैं और केई नानाप्रकारके परम सुगन्ध पीसे हैं और कई जिन मन्दिरोंके द्वारोंकी शोभा अति
पुराण
दीयमान बस्त्रोंसे करावे हैं और केई नानाप्रकारकी धातुओंके रंगोंकर चैत्यालयोंकी भीतियोंको मंड वायें हैं इसभांति अयोध्यापुरीके सबही लोक बीतराग देवकी परम भक्तिको भरते हुए अत्यन्त हर्ष से पूर्ण जिन पूजा के उत्साहसे उत्तम पुण्यको उपार्जित भए राजा दशरथ भगवानका प्रति विभूति से अभिषेक करावता भया । नाना प्रकारके वारित्र बाजते भए । राजा ने अष्ट दिनों के उपवास किए और जिनेंद्र की ष्ट प्रकारके द्रव्यों से महा पूजा करी श्रीर माना प्रकारके सहज पुष्प और कृत्रिम कहिए स्वर्ण रत्नादि के रचे पुष्पों से श्री करी जैसे नन्दीश्वर द्वीप में देवों से संयुक्त इन्द्र जिनेंद्र की पूजा करें तैसे राजा दशरथ ने अयोध्या में करी और राजा ने चारोंही पटरानियों को गन्धोदक पठाया सो सीनके निकट तो तरुमा स्त्री ले गई । सो शीघ्र ही पहुंचा वे उठकर समस्त पापों का दूर करनहारा जो गन्धोधक उसे मस्तक और नेत्रों से लगावती भई और राणी सुप्रभा के निकट वृद्ध खोजा ले गया था सो शीघ्र नहीं पहुंचा इस लिये राणी सुप्रभा परम कोपकर शोक को प्राप्त भई मन में चितवती भई जौ राजाने उन तीन राशियों को मन्बोदक भेजा और मुझे न भेजा सो राजा का क्या दोष है मैं पूर्व जन्म में पुराय न उपजाया के पुरायली मासौभाग्यवंती प्रशंसा योग्य हैं जिन को भगवानका गोदक महापवित्र राजाने पाया अपमानकर दग्व जो में सोमेरे हृदयका ताप और
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