Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पन पुराम ॥४२१॥
नारद मनमें चितवताभया । एक बार सीताको दे कि वह कैसीहै कैसे लक्षणोंकर शोभायमानहै जो जनकने रामको देनी करी है सो नारद शीलसंयुक्तहै हृदय जिसका सीताके देखने को सांताके घर आया सो सीता दपर्णमे मुख देखती थी सो नारदकी जटा दर्पणमें भासी सो कन्या भयकर ब्याकुल भई मनमें चितवती भई हाय माता यह कौनहै भयकर कम्पायमान होय महिलके भीतर गई नारद भी लारही महिलमें जाने लगे तब द्वारपाली ने रोका सो नारदके और द्वारपाली के कलह हुआ कलहके शब्द मुन खडग के और धनुषके घारक सामन्त दौड़े ही गए कहते भए पकड लो पकड लो यह कौन है । ऐसे तिन शस्त्र धारियों के शब्द सुनकर नारद डरा आकाशमें गमनकर कैलाश पर्वत गया वहां तिष्ठ कर चितवता भया कि में महाकष्ट को प्राप्त भयाथा सा मुशकिल से वचा नवा जन्म पाया जैसे पक्षी दावानलसे बाहिर निकसे तैसे में वहां से निकसा। सो धोरे धीरे नारदकी कांपनी मिटी और ललाटके पसेव पूंछे केश विसर गएथेवेसमार कर बान्धे कांपे हैं हाथ जिसके ज्योज्यों वह बात याद आवे त्योत्यों निश्वासनाषे महाक्रोधायमान होय मस्तक हलाय ऐसे विचारता भया कि देखो कन्या
की दुष्टता में अदुष्टचित्त सरलस्वभाव रामके अनुरागसे उसके देखनेको गयाथा सो मृत्युसमान अवस्था। | को प्राप्त भया यह समान दुष्ट मनुष्य मुझे पकड़ने को बाए सो भलीभई जो क्वा पकड़ा न गया।व।
वह पापिनी मेरे आगे कहां बचेगी जहाँ जहां जाय तहां ही उसे कष्ट में नाखू मेंबिना बजाये वादित्र नाचूं सो जब बादित्रबाजेतब कैसेटरू ऐसा विचारकरशीघही वैताडय को दक्षिण श्रेणि विषे जोरथन पुरु | नगर वहां गया महा सुन्दर जो सीता का रूप सो चित्रपट विषे लिख लेगया कैसा है सीता का रूप
-BaapMALE
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