Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पा
पुराण
॥४५॥
किया तब लोगों की पुकार आई सो राजा सुनकर नगर के बाहिर निकसा प्रमोद उद्वेग
और कौतुक का भरा राजा अश्वको देखता भया कैसा है अश्व नौयौवनहै और उछलता संता अति तेजको घरे मन समान है वेग जिसका सुन्दर हैं लक्षण जिसके और प्रदक्षिणारूप महा प्रावर्तको घरे है मनोहर है मुख जिसका और महा बलवान खुरों के अग्रभाग कर मानो मृदंगही बजावे है जिसपर कोई चढ़ न सके और नाशिका का शब्द करता संता अति शोभायमान है ऐसे अश्व को देखकर राजा हर्षित होय बारम्बार लोकों से कहताभया यह किसीका अश्व बन्धन तुड़ाय पाया है तब पण्डितों के समूह राजा से प्रिय वचन कहते भये हे राजन इस तुरंग के समान कोई तुरंगही नहीं औरोंकी तो क्या बात ऐसा अश्वराजाके भी दुर्लभ आपके भी देखने में ऐसा अश्व न आया होयगा सूर्य के रथके तुरंगों की अधिक उपमा सुनिएई सो इस समानतो वेभी न होवेंगे कोई दैवके योगसे आपके निकट ऐसा अश्व आया है सो आप इसे अंगीकार करो आप महापुण्याधिकारी हो तब राजाने अश्वको अंगीकार किया अश्वशाला में ल्याय सुन्दर डोरियों से बांधा और भांति भांतिकी योग सामग्री कर इसके यत्नकिए एक मास इसका यहां हुवा एकदिन सेवकने आय राजाको नमस्कारकर विनती करी हे नाथ एक बनका मतंग गज आपाहे सो उपद्रवकरे है तब राजा बड़े गजपर असघार होयउस हाथीकी ओर गए वह सेवक जिसने हाथीका वृत्तान्त आय कहाथा उसके कहे माग कर राजा ने महावन में प्रवेश किया सो सरोवरके तट हाथी खड़ा देखा और चाकरों से कहा जो एक तेज तुरंग ल्यावो तब मायामई अश्वको तत्काल लेगए सुन्दर है शरीर जिसका राजा उसपर चढ़े सो वह आकाशमें राजाको लेउड़ा तब सब परिजन पुरजम ।
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