Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुराण
n४३॥
प्राप्त भए और कईयक धनुष के नागों के स्वास से जैसे वृक्ष का सूका पत्र पवन से उड़ा उड़ा फिरे तैसे उड़ते फिरें और कईयक कहते भए जो अब जीवते घर जावें तो महादोन करें सकल जीवों को अभयदान देखें।
और कईयक ऐसे कहते भए यह रूपवन्ती कन्या है तो क्या इसके निमित्त प्राण तोन देने राजकुमार विचारते भये कि यह कोई मयामयी विद्याधर पायाहे सो राजावों के पुत्रोंको बाधा उपजाई है औरकईयकमहा। भाग्य ऐसे कहते भए अब हमारे स्त्री से प्रयोजन नहीं यह काम महा दुःखदाई है जैसे अनेक साधुअथवा उत्कृष्ट श्रावग शील व्रत धारे हैं तैसे हम भी शील व्रत धारेंगे धर्म ध्यान कर काल व्यतीत करेंगे इस भान्ति सर्व पराङ्ग मुख भऐ और श्रीरामचन्द्र धनुष चढावने को उद्यमो उठ कर महामातेहाथीकी न्याई। मनोहर गतिसे चलते जगत् को मोहते धनुष के निकट गए सो धनुष रामके प्रभावसेज्वालारहित झेनया जैसा सुन्दर देवोपुनीत रख है तैसा सौम्य होगया जैसा गुरू के निकट शिष्य होय जाय तब श्रीरामचन्द्र । धनुष को हाथ में ले चढ़ाय कर सेंचते भए सो मझापचण्ड शब्द भया पृथिवी कंपायमान भई कैसा है धनुष विस्तीर्ण है प्रभा जिसकी जैसा मेघ गाजे तैस्त्र धनुष का शब्दभया मयूरों के समूह मेघ का प्राममा जान नाचने लगे जिसके तेज के आगे सूर्य ऐसा भासने लगा जैसा अग्नि का कण भासे और स्वर्ण मई रजसे आकाश के प्रदेश व्याप्त होगए यह धनुष देवाधिष्ठित है सो आकाश में देव धन्य धन्य शब्द करते भए और पुष्पों की वर्षा होती भई देव नृत्य करते भए तब श्रीराम महादयावन्त धनुष के । शब्द से लोकोंको कम्पायमान देख धनुषको उतारतेभए लोक ऐसे डरे मानों समुद्र के भ्रमरमें आगए हैं तब सीता अपने नेत्रों से श्रीराम को निरखती भई कैसे हैं नेत्र पवन से चंचल जैसा कमलों का
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