Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पद्म
| राम के प्रभाव कर सुखी भया, चंचल तुरंगों कर युक्त जो स्थ उस में प्रारुढ जो राघव महाउद्योत रूप ॥४१८० है शरीर जिनका वषतर पहिरे हार और कुंडल कर मंडित धनुष चढ़ाए और बाण हाथमें सिंहके चिन्ह
की है ध्वजा जिनके और जिन पर चमर दुरे हैं और महामनोहर उज्ज्वल छत्रसिर पर फिरे हैं पृथिवीके रक्षक धीरवीरहै मन जिनका असे श्रीरामलोकके वल्लभ प्रजाके पालक शत्रुवों की विस्तीर्ण सेना में प्रवेश करते भए सुभटों के समूह कर संयुक्त जैसे सूर्य किरणों के समूह कर सोहै तैसे शोभते भए जैसे माता हाथी कदलीवन में बैठा केलोंके समूह का विध्वंस करे तैसे शत्रुवों की सेना का भंगकिया जनक और कनक | दोनों भाई बचाए और लक्ष्मण जैसे मेघ बरमें तैसे वाणों की वर्षा करता भया, तीक्ष्ण सामान्य चक्र
और शक्ति कनक त्रिशूल कुठार करीत इत्यादि शस्त्रों के समूह लक्ष्मण के भुजावों कर चले उन कर अनेक म्लेछ मुवे जैसे फरसीनकर वृक्ष कटें वे भील पारधी महाम्लेछ लक्ष्मणके बाणेकर विदारे गये हैं उरस्थल जिनके कटगई हैं भुजा और ग्रीवा जिनकी हजारां पृथ्वीमें पड़े तब वे पृथ्वी के कंटक तिनकी सेना लक्ष्मण अागे भामी लक्ष्मण सिंहसमान दुर्निवार उसे देखकर जे म्लेलों में शार्दूल समान थे वेभी अतितोभको प्राप्त भए महाकादित्रों के शब्द करते और मुखसे भयानक शब्द बोलते और धनुषबाण खडग चक्रादि अनेक शस्त्रों को घरे और रक्त बस्त्र पहिरे खंजर जिनके हाथमें नाना वर्ण का है अंगजिनका के यक काजल समान श्यामकै यक कर्दम समान कै यक ताम्रवर्ण वृक्षों के बक्कल
पहिरे और नानाप्रकार के गेरुवादि रंगतिनकर लिप्त हैं अंग जिनके और नाना प्रकारके वृत्तोंकी मंजरी | तिनके हैं छोगा सिरपर जिनके,और कौड़ी सारिखे हैं दांत जिनके और विस्तीर्ण हैं उदर जिनके ऐसे
For Private and Personal Use Only