Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
४०२॥
मनस्विनी उनके पुत्री चित्तोत्सवा सो कुंवारी चटशालामेंपढ़े और राजाका पुरोहित धूम्रकेश उसके स्वाहा नामा स्त्री उसका पुत्र पिंगल सोभी चटशालामें पढ़े सो चित्तोत्सवाका और पिंगलका चित्त मिलगया सो इनको विद्या की सिद्धि न भई जिनका मन काम वाणसे वेधा जाय तिनको विद्या और धर्मकी प्राप्ति न होयहै प्रथम स्त्री पुरुष का संसर्ग होय फिर प्रीति उपजे प्रीति से परस्पर अनुराग वढ़े फिर विश्वासउपजे उससे विकार उपजे जैसेहिंसादिकपंच पापोंसे अशुभ कर्म बन्धे तैसे स्रीसंग से काम उपजेहै ।।
अथानन्तर वह पापी पिंगल चित्तोत्सवा को हर लेगया जैसे कीर्ति को अपयश हर लेजाय जब वह दूर देशों में हर लेगया तब सब कुटम्ब के लोकों ने जानी अपने प्रमाद के दोष से उसने वह हरी है जैसे अज्ञान सुगतिको हरे तैसे वह पिंगल कन्याको चुरा लेगया परन्तु धनरहित शोभेनहींजैसे लोभी धर्मवर्जित तृष्णासे नसोहे सो यह विदग्ध नगरमें गया वहां अन्य राजावों की गम्यतानहीं सो निधन नगरके बाहिर कुटि बनाय कर रहा उस कुटि को किवाड़नहीं और यह ज्ञान विज्ञान रहित तृण काष्ठादिकका विक्रय कर उदर भरे दलिद्र के सागरमें मग्न सो स्त्रीका और आपका उदर महाकठिनता से मेरे तिस नगरमेंराजा प्रकाशसिंह और राणी प्रवरावली का पुत्र जोराजा कुण्डलमंडित सो इस स्त्री को देख शोषण सन्तापन उच्चाटन वशीकरण मोहन ये काम के पंच बाण इन से वेध्या गया उस ने रात्रि को दूती पाई सो चित्तोत्सवा को राजमन्दिर में लेगई जैसे राजा सुमुख के मन्दिर में दूती बन माला को लेगई थी सो कुण्डलमण्डित सुखसे रमें ॥
अथानन्तर वह पिंगल काष्ठ का भार लेकर घर आया सो सुन्दरी को न देखकर अतिकष्ट के
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