Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पद्म पुरा HYou
शरीर की क्रिया अनादर से करे तब राजा का बालचन्द्र नामा सेनापति सो राजा को विन्तावान देख । पूछता भया कि हे नाथ ! आपको ब्याकुलता का कारण क्या है जब राजाने कुण्डल मंडितका वृत्तांत कहा तब बालचन्द्रने राजा से कही आप निश्चिन्त होवो उस पापी कुण्डल मण्डितको बांधकर आपके निकट ले अाऊं तब राजा ने प्रसन्न होय बालचन्द्रको विदा किया चतुरंग सेना से बालचन्द्र सेनापति चढ़ा सो कुंडलमंडित मूर्ख चित्तोत्सवा से आसक्त चित्त सर्व राजचेष्टा रहित महा प्रमाद में लीन था नहीं जाना है लोक का वृत्तान्त जिसने वह कुंडलमंडित नष्ट मया है उद्यम जिसका जो बालचन्द ने जाय कर क्रीडामात्र में जैसे मृग को बांधे तैसे बांध लिया और उसके सर्व राज्य में राजा अरण्य | का अमल किया और कुंडलमंडित को राजा अरण्य के समीप लाया बालचन्द सेनापति ने राजा अरण्यका सर्व देश बाधा रहित कियो राजा सेनापतिसे बहुत हर्षित भया और बहुत बघारा और पारितोषिक दिये और कुंडल मंडित अन्यायमार्ग से राज्यसे भ्रष्टभया हाथी घोड़े स्थ पयादे सब मए शरीर । मात्र रहगया पयादा फिरे सो महा दुस्खी पृथिवी पर भ्रमण करता खेद खिन्न भया मनमें बहुत पछताव जो में अन्याय मार्गीने बड़ों से विरोध कर बुरा किया एकदिन यह मुनियों के आश्रम जाय आचार्य । को नमस्कार कर नाव सहित धर्म का भेद पूछताभवा गौतम स्वामी राजा श्रेणिकसे कहे हैं हे राजन् ! | दुखी दरिद्री कुटुम्ब सों रहिव ब्याघिसे पीड़ित तिनमें किसी एक भव्यजीवके धर्म बुद्धि उपजे है उसने
आचार्य से पूछा हे भगवन ! जिसकी मुनि होनेकी शक्ति न होय सो गृहस्थाश्रममें केसेधर्मका सायन करे आहार भय मैथुन परिग्रह यह चार संज्ञा तिन में तत्पर यह जीव कसे पापों कर छूटे सो में सुना।
For Private and Personal Use Only