Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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Nyoon
दशरथ की जो चार राणी सोमानों चारदिशा ही हे तिन के चारही पुन समुद्र समान गंभीरपर्वत समान | अचल जगत् के प्यारे, इन चारों ही कुमारों को पिता विद्या पढ़ने के अर्थ योग्य पाठक को सौंपते भएका __अथानन्तर एक अपिल्य जामा नगर अतिसुन्दर कहां एक शिवी मामाबामण उसकी इषुनामस्त्री उसकै परि नामा पुत्र सो महा-अविवेकी अविनई माता पिता ने लड़ाया सोमा कुचेष्टा का घरपारा हज़ारों उलहनों का पात्र होताभया, यद्यपि द्रव्यका उपार्जन धर्म का संग्रह, विद्या का ग्रहण, उस नगर में ये सब ही बातें सुलभ हैं परन्तु इसको विद्यासिद्ध नभई, तब मातापिता ने विचारी विदेशमें इसे सिद्धि होय तो होय, यह विचार खेद खिन्न होय घर से निकास दिया, सो महादुखी होय केवल बस्त्र याके पास
सो यह राजगृह नगरमें गया वहां एक वैवस्वत नामा धनुर्वेद का पाठी महापंडित जिस के हजारों शिष्य | विद्या का अभ्यास करें उसके निकड ये अरि यथार्थ धनुष विद्या का अभ्यास करता भया सो हज़ारों शिष्यों में यह महाप्रवीन होता भया उस नगर का राजा कुशाग्र सो उसके पुत्रभी चैवस्वत के निकट बाणविद्या पढ़ें सो राजा ने सुनी कि एक विदेशी ब्राह्मण का पुत्र आया है जो राजपुत्रोंसेभी अधिक बाणविद्या का अभ्यासी भया तव राजाने मनमें रोष कियो जब यह बात वैवस्वतने सुनो तब अरि को समझाया कि तू राजाके निकट मूर्खहोजा विद्यामत प्रकाशेसो राजानेधनुष् विद्याके गुरुको बुलाया कि में तेरेसर्व शिष्यों की विद्या देखूगा तब सव शिष्यों को लेकर यह गया सबही शिष्योंने यथायोग्य अपनी अपनी वाणविद्या दिखाई निशाने बींघे ब्राह्मण का जोपुत्र उसने ऐसे बाण चलाए कि विद्या रहित जानागया तब राजाने जानी इसकी प्रशंसा किसीने झूठीकही तब देवस्वतको सव शिष्योंसहित ।
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