Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
पुराण
॥२२॥
योग्य नहीं पृथिवी पर मेरी हास्य होय कि यह इन्द्र रावण से नम्रीभूत हुवा पुत्री देकर मिला सो तुमने यहतो विचाराही नहीं और विद्याधर पनेकर हम और वह बरावरहैं परन्तु बुद्धि पराक्रममें वह मेरी बराबर नहीं जेसे सिंह और स्याल दोऊ बनके निवासी हैं परन्तु पराक्रम में सिंह तुल्य स्याल नहीं असे पिता से गर्वके वचन कहे पिताकी बात मानी नहीं पिता से विदा होयकर आयुधशालामेंगये क्षत्रियोंको हथियार बांटे और वक्तर बांटे और सिंधुराग होनेलगे अनेक प्रकारके वादित्र बाजने लगे और सेना में यह शब्द हुवा कि हाथियोंको सजावो घोड़ोंके पलान कसो रथोंके घोड़े जोड़ो खडगवांधो वक्तर पहरो धनुषबाण लो सिर टोप धरो शीघही खंजर लावो इत्यादिक शब्द देवजातिके विद्याधरोंके होतेभये ।
अथानन्तर योधा कोपको प्राप्तभये ढोल बाजनेलगे हाथी गाजलेलगे घोड़ेहींसने लगे और धनुषके टंकोर होनेलगे योधावोंके गुञ्जार होनेलगे और बन्दीजन विरद बखानने लमे जगत् शब्दमई होयगया सर्वदिशा तरवार तथा तोमर जातिके शस्त्रकर तथा पांसिन कर ध्वजावोंकर शस्त्रों कर और धनुषों कर आच्छादित भई और सूर्यभी आच्छादित होयगया राजा इन्द्रकी सेनाके जे विद्याधर देव कहावें थे समस्त स्थन पुरसे निकसे सर्वसामग्री घरे युद्धके अनुरागी दरवाजे प्राय भेले भये परस्पर कहेहे रथ आगेकर माता हाथी आया है हे महावत हाथी को इस स्थान से परेकर हो घोड़े के सवार कहां खडा होरहा है घोड़े को आगे लेा इस भांति के वचनालाप होते हुवे शीघहीं देव बाहिर निकसे गाजते
आये तामें शामिल भये और राक्षसों के सन्मुख आय रावण के और इन्द्र के युद्ध होनेलगा देवोंने राक्षसोंकी सेना कळू इक हटाई शत्रों के जे समूह तिनके प्रहारकर आकाश आादित होगया त
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