Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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चावल लिया तब परालका क्या काम जय रावणने ऐसा कहा तब इन्द्रजीत पिताकी मात्रा से पीछे बाहुडा और सर्व देवों की सेना शरदके मेघसमान भागगई जैसे पपनकर शरदके मेघ विलयजाय रावण की सेना में जीतके वादिव बाजे ढोल नगारे शंख झांस इत्यादि अनेक वादितों का शब्द भया इंद्र को पकडा देख रावणका सेना प्रति हर्षितभई रावण लंका में चलनेको उद्यमी भया सूयके स्थ समान रय ध्वजावों से शोभित और चंचल तुरज नृत्य करते हुए और मद झरते हुए नाद करते हाथी तिन पर भ्रमर गुंजार करे हैं इत्यादि महासेना से मंडित राक्षसों का अधिपति रावण लंका के समीप आया तब समस्त बन्ध जन और नगरके रक्षक तथा पुरजन सपही दर्शनके अभिलाषी भेट लेले सन्मुख आए और रावण की पूजा करते भए, जे बड़े हैं तिनकी रावण ने पूजा करी रावण को सकल नमस्कार करते भए
और बड़ों को रावण नमस्कार करता भया कैयकों को कृपा दृष्टि से कैयकों को मंदहास्य से कैयकों को वचनों से रावण प्रसन्न करता भया बुद्धिके बल से जाना है सबका अभिप्राय जिसनेलंका तो सदाही मनोहर है परन्तु रावण बड़ी बिजय कर पाया इसलिये अधिक समारीहै ऊंचे रत्नों के तोरण निरमापे मंद मंद पवन कर अनेक वर्ण की ध्वजा फरहरे हैं कुंकुमादि सुगंध मनोज्ञ जल कर सींचा है समस्त पृथिवीतल जहां और सब ऋतु के फूलों से पूरित है राजमार्ग जहांऔर पंचवर्ण रत्नोंके चूर्ण कर रचे हैं मंगलके मंडन जहां और दरवाजयों पर थांभे है पूर्ण कलश कमलोंके पत्र और पल्लब सेढ़के, संपूर्ण नगरी वस्त्राभरण कर शोभित है जैसे देवों में मंडित इंद्र अमरावती में श्राबे तैसे विद्याधरों कर वेढा रावण लंका में आया पुष्पक विमान में बैठा देदीप्यमानहै मुकट जिसको महारत्नोंके बाजूबंदपहिरे निर्मल प्रभाकर युक्त मोतियों
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