Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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॥३१॥
पन्न || श्रावे प्रति व्याकुल भई पक्षियों की न्याई भूमे ये दोनों महा भयवान कंपायमानहै हृदय जिनका तव ।
गुफाका निवासी जो मणिचूल नामा गंधर्वदेव उससे उसकी रत्नचुल नामास्त्रीमहादयावन्ती कहतीभई हे देव देखो ये दोनों स्त्री सिंहसे महा भयभीतहैं और अति बिह्वलहें तुम इनकी रक्षाकरो तव गंधर्वदेव को | दया उपजी तत्काल विक्रियाकर अष्टापदका स्वरूप रचासो सिंहका और अष्टापदका महा भयंकर शब्द होता भया सो अंजनी हृदयमें भगवानका ध्यान धरती भई और बसंतमाला सारसकी न्याई विलाप करे हाय अंजनी पहिले तो तूधनीके दुर्भागिनी भई फिर किसी इक प्रकार धनीका आगमन भया सो तुझे गर्भ रहासो सासने बिना समझे घरसे निकासी फिर माता पिताने भी न गखी सो महा भया नक बनमें आई वहां पुण्यके योगसे मुनिका दर्शन भया मुनिने धीर्य बंधाय पूर्वभव कहे धर्मोपदेश देय आकाशके मार्ग गए और तू प्रसूति के अर्थ गुफामें रही सो अब इस सिंहके मुखमें प्रवेश करेगी हाय हाय राजपुत्री निर्जनवनमें मरण प्राप्त होयहै अब इस बनके देवता दयाकर रक्षाकरो मुनीने कहीथी कि तेरा सकलदुःखगया सो क्या मुनियोंके बचन अन्यथा होयह इसभांति विलाप करती वसंतमाला हिंडोले झूलनेकी न्याई एकस्थल न रहे क्षणमें मुन्दरीके समीप आवे क्षणमें बाहिर जावे । __ अथानंतर वह गुफाकागंधर्वदेव जो अष्टापदका स्वरूपधर आयाथा उसने सिंहके पंजोंकीदीनीतसिंह भागा और अष्टापदभी सिंहको भगायकर निजस्थानक को गयायह स्वप्नसमान सिंह और अष्टापद के युद्धका चरित्र देख बसंतमाला गुफामें अंजनीसुन्दरी के समीप आई पल्लवों से भी अति कोमल जो हाथ तिन से विश्वासती भई मानों नवा जन्म पाया हित का संभाषण करती भई सो एक वर्षबराबर ||
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