Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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सूत्र की आज्ञा प्रमाण अन्तराय रहित भोजन करतेभये वृषभदत्त भगवान को अहार देय कृतार्थ भया भगवान के एक महीना तप कर चम्पा के वृक्ष के तले शुक्ल ध्यान के प्रताप कर घातिया कर्मोका नाशकर केवल को प्राप्त भए तब इन्द्र सहित देव आयकर प्रणाम और स्तुति कर धर्म श्रवण करते भए
आपने यति श्रावक का धर्म विधिपूर्वक वर्णनकिया धर्म श्रवण कर कई मनुष्य मुनि भए कई मनुष्य श्रावक भए कई तिर्यंच श्रावक के व्रत धरते भये और देवको बर नहीं सो कई देव सम्यक्तको प्राप्तहोते भए श्रीमुनिसुव्रतनाथ धर्मतीर्थ का प्रवर्तन कर सुर असुर मनुष्यों से स्तुति करने योग्य अनेक साधुवों सहित पृथिवी पर विहार करतेभए सम्मेदशिखर पर्वत से लोक शिखर को प्राप्तभए यह श्री मुनिसुव्रत नाथ का चरित्र जे प्राणी भाव धर सुनें तिनके समस्त पाप नाश को प्राप्त होंय और ज्ञान सहित तप से परम स्थानको पावें जहां से फेरे आगमन न होय ॥ __अथानन्तर मुनिसुव्रतनाथके पुत्र राजा सुव्रत बहुतकाल राज्यकर दत्त पुत्रको राज्यदेय जिनदीक्षा घर मोक्षको प्राप्तभये और दत्त के एलावर्धन पुत्रभया उसके श्रीवर्धन उसके श्रीबृक्ष उसके संजययंत उसके कुणिम उसके महारथ उसके पुलोमई इत्यादि अनेक राजा हरिवंश कुलमेंभये तिनमें कैयक मुक्ति को गये कैयक स्वर्गलोक गये इस भांति अनेक राजा भये फिर इसी कुलमें एक राजा वासवकेतु भया मिथिला नगरी का पति उसके विपुला नामा पटराणी सुन्दर हैं नेत्र जिसके सो वह राणी परम लक्ष्मी का स्वरूप उसके जनक नामा पुत्र होतेभये समस्त नयों में प्रवीण वे राज्यपाय प्रजाको ऐसे पालतेभये जैसे पिता पुत्रको पाले गौतम स्वामी कहे हैं हे श्रेणिक ! यह जनककी उत्पत्ति तुझे कहीजनक हरिवंशी हैं
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