Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
॥३६
अर्चा करे हैं जैनशास्त्र की चर्चा करे हैं सब जीवों से मित्रता करे हैं विवेकियों का बिनय करे हैं वे सभ्य उत्तम पद को पावे हैं कईएक क्रोध करे हैं कामसेवे हैं, राग देष मोह के वशी भूत हैं पर जीवों को लगे हैं.वे भव सागर में डूबे हैं, नाना विन नावे हैं जगत् में राचे हैं खेदखिन्न हें दीर्घशोक करे हैं झगम करे हे संताप करे हैं असि मसि कृषि बाणिज्यादि व्यापार करें हैं ज्योतिष् वैद्यक यंत्रादि करे हैं शारादि शास्त्र रचे हैं वे वृथा पच पच कर मरे हैं इत्यादि शुभाशुभ कर्म से श्रात्म धर्म को भूल रहे हैं संसारी जीव चतुर्गति में भ्रमण करे हैं, इस अवसर्पणी काल विषे आयु काय घटती जाय है, श्री मल्लिनाथ के मुक्ति गये पीछे मुनि सुबतनाथ के अंतराल में इस क्षेत्र में अयोध्या नगरी विषे एक | विजय नामा राजा भया महा शूर बीर प्रताप से संयुक्त प्रजा पालने में प्रवीण जीते हैं समस्त शत्रु जिसने इसके हेमचूलनी नामा पटराणी इस के महा गुणवान सुरेन्द्रमन्यु नामा पुत्र भए, उसके कीर्ति समा नामा राणी उसके दोय पुत्र भए एक बज्रवाहु दूजा पुरंदर चन्द्रसूर्यसमान है कान्ति जिनकी महा गुणवान् अर्थसंयुक्त हैं नाम जिनके वे दोनों भाई पृथिवी पर सुखसे रमते भए । - अथानन्तर हस्तिनागपुर में एक राजा इन्द्रबोहन उसके राणी चूढ़ामणी उसके पुत्री मनोदया अति सुन्दरी सो वज्रबाहु कुमारने परणी सो कन्या का भाई उदय सुन्दर बहिन के लेने को आया सो बज्रबाहु कुमार का स्त्री से अति प्रेम था स्त्री अति सुन्दरी सो कुमार स्त्री के लार सासरे चले मार्ग में वसंत का समयथा और बसंतगिरि पर्वत के समीपजाय निकसे ज्योज्यों वह पहाड़ निकट अावे त्योंत्यों उसकी | परम शोभा देख कुमार अति हर्ष को प्राप्त भए पुष्पों की जो मकरन्दता उससे मिली सुगंध पवन सो
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