Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुराण
३९
पद्म आप निश्चितरहो देखो इनसबनको दर्शदिशाको भगाऊं ऐसा कहकर श्राप स्थमें चढ़े और
केकईको चढ़ाय लीनी कैसाहे स्थ जिसके महा मनोहर अश्वजुड़े हैं कैसेहें दशरथ माना स्थपर चढ़े . शरद ऋतुके सूर्यही हैं और केकई घोड़ोंकी बाघ समारती भई कई कैसीहै केकई महापुरुषार्थकेस्वरूप । कोधरे युद्धकी मूर्तिही है पतिसे विनती करती भई हे नाथ! आपकी आज्ञाहोय और जिसकी मृत्यु उदय ।
आईहोय उसहीकी तरफ़ रथ चलाऊं तब राजा कहते भए कि हे प्रिये। गरीयोंके मारनेकर क्याजो इस सर्व सेनाका अधिपति हेमप्रभहै जिसके सिरपर चन्द्रमा सारिखा सुफेदछत्र फिरे है उसीतरफ़ रथ चला। हे रणपण्डिते! अाज में इस अधिपतिहीको मारूंगा जब दशरथने ऐसाकहा तववह पतिकी आज्ञा प्रमाण । उसी की तरफरथ चलावती भई कैसा है रथ ऊंचाहै सुफेदछत्र जिसके और रूपहै महाध्वजा जिसकी रथ। में ये दोनों दम्पती देवरूप विराजे हैं इनका रथ अग्निसमानहै जै इस स्थकी ओर आए वे हजारों पतंग की न्याई भस्म भए दशरथ के चलाये जेबाण तिनसे अनेक राजाबींधेगए सो क्षणमात्र में भागेतवहेमप्रभजो सबोंका अधिपति था उसके प्रेरे और लजावान होय दशरथ से लड़नेको हाथी घोड़ास्थ पयादों से मण्डित
आए कियाहे वरपनेका महाशब्द जिन्होंने तोमरजाति के हथियार बाण चक्र कनकइत्यादि अनेक जाति के शस्त्र अकेले दशरथ पर डारते भए सो बडा आश्चर्य है दशरथ राजा एकरथ कास्वामी था सोयुद्धसमय मानों असंख्यातस्थ हो गए अपने बाणो से समस्त वरियोंके बाण काटडाले और आप जेवाणचलाए
वे किसी की दृष्टि न आए और शत्रुवों के लगे सो राजा दशरथने हेमप्रभको क्षणमात्र में जीत लियाउस । की ध्वजा छेदी छत्र उडाया और रथके अश्व घायल किए स्थतोडडालारथसे नीचे डारदिया तब वह ।
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