Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पराया ॥३३॥
गांधार ३ मध्यम ४ पंचम ५ धैवत ६ निषाद ७ सो केकईको सर्वगम्य और तीन प्रकार लय शीघ्र १ मध्य २ विलंबित ३ और चार प्रकारका ताल स्थायी १ संचारी २ श्रारोहक ३ अबरोहक ४ और तीन प्रकारकी भाषा संस्कृत १ प्राकृत २ःशौरसेनी ३ स्थायितालके भूषण चार प्रसंगादि १ प्रसन्नान्त २ मध्य प्रसाद ३ प्रसन्नायवसान और संचारी के छह भूषण निवृत १ प्रस्थिल २ बिंदु ३ प्रखोलित ४ तमोमंद ५ प्रसन्न ६ आरोहण का एक प्रसन्नादि भूषण और अबरोहण के वो भूषण प्रसन्नान्त १ कुहर २ येतेरह अलंकार और चारप्रकार वादिन वे ताररूप सोतांत १और चामके मढेवे शानद्धर और बांसुरी
आदि फकके बाजे वेशुक्रि और क्रांसीकेबाने वेघनश्येचारप्रकारकेवादिनजैसे केकई बजावे तैसे और त बजावे गीत नृत्भवादित्र येतीन भेदहें सोनृत्योंतीनों पाए औरस्सकभेद नव शृंगार १ हास्य २ करुणा ३ । वीर ४ अद्भुत ५ भयानक ६ रौन ७ बीमत्स शांत तिनके भेद जैसे केकई जाने तैसे और कोई म जाने अधर मात्रा और मणितशास्रमें निपुण गधपच सर्व में प्रवीण व्याकरण छन्द अलंकार नाम माल लक्षण शास्त्रतर्क इतिहास और चित्रकला प्रति प्रवीण तथा रत्नपरीक्षा अश्वपरीचा नर परीक्षा शस्त्र । परीक्षा गज परीक्षा वृषपरीचा वस्त्रपरीक्षा सुगन्धपरीक्षा मुगन्धादिक द्रव्यका निपजायना इत्यादि |
सब बातोंमें प्रवीण ज्योतिष विद्या निपुण बालवृद्ध तरुण मनुष्य तथा घोड़ेहाथी इत्यादि सर्वके इलाज | जाने मंत्र औषधादि सर्वमें तत्पर वैद्य विद्यानिकाल सर्वकलामें सावधान महाशीलवन्ती महामनोहर युद्ध
कलामें अतिप्रवीण शुमारादि कलामें अतिनिपुगा विनयही प्रामुषमा जिसके कला और गुण और रूप | में ऐसी कन्या और नहीं मौसमस्यामी कहे हे हे श्रेणिक बहुत कहनेसे क्या केकईके गुणों का वर्णन कहाँ
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