Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुराण
॥३८१५
जिसने मानों मरी ही शरीर धर आई है लहलहाट करे है लाल जीभ का अग्रभाव जिसका मध्यान्हके सूर्य समान आतापकारी सो पापिनी सुकौशल स्वामी को देख कर महावेग से उछल कर आई उसे प्रावती देख वे दोनों मुनि सुन्दर हैं चरित्र जिनके सर्व प्रालंब रहित कायोत्सर्ग घर तिष्ठे सो पापिनी सिंहनी सुकौशल स्वामी का शरीर नखों कर विदारती भई गौतम स्वामी राजा श्रेणिक से कहे हैं हे राजन् ! देख संसार का चरित्र जहां माता पुत्र के शरीर का भक्षण का उद्यम करे है इस उपरान्त और कष्ट कहां जन्मान्तर के स्नेही बांधव कर्मके उदय से बैरी होय परिणमें तब सुमेरु से भी अधिक स्थिर सुकौशल मुनि शुक्ल ध्यान के धरन हारे तिनको केवलज्ञान उपजा अन्तकृत केवली भए तव इन्दादिक देवों ने पाय इन के देह की कल्पवृक्षादिक पुष्पों से अर्चा करी चतुरनिकाय के सब ही देव आए और नाहरी को कीर्तिधर मुनि धर्मोपदेश बचनों से संबोधते भए हे पापिनी त सुकौशल की माता सहदेवी थी और पुत्र से तेरा अधिक स्नेह था उस का शरीर तेंने नखों से विदारा तब वह जाति स्मरण होय श्रावग के ब्रत घर सन्यास धारण कर शरीर तज स्वर्ग लोक में गई फिर कीर्तिधर मुनि को भी केवल । ज्ञान उपजा तब इन के केवल की सुर असुर पूजा कर अपने अपने स्थान को गए यह सुकौशव मुनि का महातम जो कोई पुरुष पढ़े सुर्ने सो सर्व उपसर्व से रहित होय सुख से चिरकाल जी
अथानन्तर सुकौशल की राणी विचित्र माला उसके सम्पूर्ण समय पर सुन्दर लक्षणों से मंडित पुत्र होता मया जब पुत्र गर्भ में पायो तबही से माता सुवर्ण की कान्ति को घरती भई इस लिये पुत्रा नाम हिरण्यगर्भ पृथिवी पर प्रसिद्ध भया सो हिरण्यगर्भ ऐसा राजा भया मानों अपने गुणों से पिट
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