Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पद्य
पुराण
॥३८॥
विराजे हैं जहांधर्मका बड़ा उद्योत है श्री तीर्थकर देव चक्रवर्ती वलदेव बासुदेवप्रति वासुदेवादि उपजे हैं वहां श्रीसीमंधर स्वामीका मैंने पुण्डरीकनी नगरी में तपकल्याणक देखा कैसीह पुण्डरीकनी नगरी नानाप्रकारके रत्नों के ने महल तिनके तेजसे प्रकाशरूप है और सीमंधर स्वामकितप कल्याणक विषे नानाप्रकार के देवोंका श्रागमन भया तिनके भांति २ के विमानध्वजाऔर छत्रादि से महाशोभितऔर नानाप्रकारके जेबाहन तिनसे नगरी पूर्ण देखी और जैसा श्रीमुनिसुव्रतनाथका सुमेरुविषे जन्माभिशेष का उत्सव हम सुनें हैं तैसा श्रीसीमंधरस्वामीके जन्माभिशेष का उतसव मैंने सुना और तप कल्याणक तो मैंने प्रतक्षही देखा और नानाप्रकार के रत्नों से जडित जिनमंदिर देखे जहां.महामनोहर भगवानके वड़बड़े बिम्ब बिराजे हैं और विधि पूर्वक निरंतर पूजा होय है और महा विदेह से मैं सुमेरु पर्वत पाया सुमेरु की प्रदक्षिणाकर सुमेरु के वन वहांभगवान के जे अकृत्रिम चैत्यालय तिन का दर्शन किया हे राजन नन्दनबन के चैल्यालय नाना प्रकार के रत्नों से जड़े अति रमणीक मैंने देखे जहांस्वर्णके पीत अति देदीप्यमान हैं सुन्दर हैं मोतियों के हार और तोरण जहां जिनमन्दिरवे देखते सूर्यका मन्दिर क्या और चैत्यालयोंकी वैडूर्य माणिमई भीति देखी जिनके गज सिंहादिरूप अनेक चित्राम मढ़े हैं और जहां देव देवी संगीत शास्त्ररूप नृत्यकर रहे हैं और देवारण्यवनमें चैत्यालय तहां मैंने जिन प्रतिमा का दर्शन किया और कुलाचलोंके शिखर विषे जिनेंद्रके चैत्यालय मैंने बंदेदेखे इस भांति नारदन कही तब राजा दशरथ देवेभ्यानमः ऐसा शब्द कहकर हाथ जोड़ सिर निवाय नमस्कार करता भया । अथानंतर नारदने राजाको सैनकरी तब राजाने दरबानको कहकर सबको हटाए और एकांत विराजे तब
---
For Private and Personal Use Only