Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पुराण
३२९॥
पद्म के यहांहमारी प्रिया कहां है तत्रवह वोली हेदेव यहां तुम्हारी प्रिया नहीं तव उसके वचनरूप वज्र से हृदय चूर्ण होगया और कान मानों ताते खारेपानी से सींचेगए जैसा जीवरहित मृतक शरीर होय तैसा होय गया शोकरूप दाहकर मुरझाया गया है मुखकमल जिसका यह सुसरार के नगरसे निकलकर पृथिवी विषे स्त्री की वार्ता के निमित्त भ्रमता भया मानो वायुकुमार को वायलगी तबप्रहस्त मित्र इसको अति आतुर देख कर इसके दुख से अतिदुखी भया और इससे कहता भया हे मित्र क्यों खेद खिन्न होय है अपना चित्तनिराकुल कर यह पृथिवी केतीक है जहां होयगी वहां ठीककर लेवेंगे तबकुमार ने मित्रसे कही तुम श्रादित्यपुर मेरे पिता पै जावो और सकल वृतान्त कहो जो मुझे प्रियाकी प्राप्ति न होयगी तो मेराजीवना नहींहोयगा मैं सकल पृथिवी पर भ्रमण करूहूं और तुम भी ठीक करो तब मित्र यह वृतान्त कहने को आदित्य नगर में आया पिताको सर्व वृतान्त कहा और पवनकुमार अम्बरगोचर हाथी पर चढ़कर पृथिवी विषे बिचरता भया और मन में यह चिन्ता करी कि वह सुन्दरी कमलसमान कोमल शरीर शोक के ताप से संताप को प्राप्त भई कहां गई मेरा ही है हृदयमें ध्यान जिसके वह गरीविनी बिरहरूप अग्नि से प्रज्वलित विषमवन
दिशा को गई वह सत्यवादनी निःकपट धर्म की धरनहारी गर्भका है भारजिसके मत कदापि बसन्त मालासे रहित होयगई होय वह पतिव्रता श्रावक के व्रत पालनहारी राजकुमारी शोककर अन्धहो गएहैं दो
नेत्र जिसके और विकटवन विहार करती तुघासे पीड़ित अजगर कर युक्तजो अन्धकूप उसमें ही पडीहो अथवा वह गर्भवती दुष्टपशुवों के भयंकर शब्द सुन प्राणरहित ही होयगई होय वह प्राणों से भी अधिक प्यारी इस भयन्कर अरण्य विषे जल बिनाप्यास कर सूक गए हैं कण्ठ तालु जिसके
For Private and Personal Use Only