Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
॥ ३३९॥
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घातक घायल किया वरुणका समस्त कटक हनूमान से हारा जैसे जिनमार्गी के अनेकांतनयसे मिथ्या दृष्टिहारे हनूमानको अपने कटक में रण क्रीड़ा देख राजा वरुण ने कोपकर रक्तनेत्र किये और हनुमान घर आया तब रावण वरुण का हनूमान पर आवता देख आप जाय रोका जैसे नदीके प्रवाहको पर्वत रोके वरुण के और रावणके महा युद्धभया तब उसही समय में वरुण के सा पुत्र हनुमानने बान्ध लिए सो पुत्रों को बान्धे सुनकर वरुण शोककर विद्दूलभया विद्याका स्मरण न रहा तव रावणने इसको पकड़ लिया सो मानो वरुण सूर्य और इसके पुत्र किरणतिनके रोकनेसे रावण राहु का रूप धारता भया वरुणको कुम्भकरणके हवाले किया और ग्राप डेरा भवनोन्माद नाम बनमें किया कैसा है वह वन समुद्रकी शीतल पवनसे महाशीतल है सो उसके निवास कर सेनाका रण जनित खेदरहित भया और वरुण को पकड़ा सुन उसकी सेना भाजी पुण्डरीकपुरमें जाय प्रवेश किया देखो पुण्यका प्रभाव जो एक नायकके हारने में सबही हारे और एक नायक के जीतनेसे सबही जीते कुम्भकरण ने कोप कर वरुण के नगर लूटने का विचार किया तब रावण ने मने किया यह राजावों का धर्म नहीं कैसे हैं रावण वरुण कर कोमल है चित्त जिनका सो कुम्भकरण को कहते भए हे बालक तैंने यह क्या दुराचारकी बातकही जो अपराघथा सोतो वरुण काथा प्रजाका क्या अपराध दुर्बलको दुःखदेना दुरगति का कारण हैं और महा अन्याय है ऐसा कहकर कुम्भकरणको प्रशान्त किया और वरुणको बुलाया कैसा है वरुण नीचा है मुख जिसका तब रावष्प वरुणको कहतेभये हे प्रवीण तुम शोक मत करो कि में युद्ध में पकड़ा गया योघावोंकी दोय ही रीति हैं मारे जांय अथवा पकड़े जांय और रणसे भागना यह कायरका कामहै इसलिये तुम हमसे
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