Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म पुराण
पृथ्वीनाथ जिनकी प्रज्ञादेव विद्याधर सबही माने हैं है कि यह तुझे पुण्य पापका फल प्रत्यक्ष ॥३५॥कहा सोयह कथन सुनकर योग्य कार्य करना अयोग्य काम न करना जैसे बटसारी बिना कोई मार्ग में चले तो मुखसे स्थानक नहीं पहुंचे तैसे सुकृत बिना परलोक में सुख न पावे कैलाश के शिखरसमान जे ऊंच महल तिनमें जो निवास करे है सो सर्व पुण्यरूप वृक्षका फल है और जहां शीत उष्णपवन पानीकी बाघ ऐसी कुटियों में बसे हैं दद्रिरूप कीच में फंसे हैं सो सर्व धर्मरूप वृत्तका फल है और विन्ध्याचल पर्वतके शिखरसमान ऊंचे जे गजराज उनपर चढ़कर सेना सहितचले हैं चंवर दुरे हैं सो सब पुण्यरूप वृक्ष का फल है जे महातुरंगों पर चमर दुरते और अनेक असवार पियादे जिनके चौगिर चले हैं सो सव पुण्य रूप राजाका चरित्र है और देवोंके विमानसमान मनोग्य जे रथ तिनपर चढ़कर जे मनुष्य गमन करे हैं। सो पुण्यरूप पर्वतके मीठे नीकरने हैं और जो फटे पग और फाटे मैले कपड़े और पियादे फिरे हैं सो सब पाप रूप वृचका फल है और जो अमृत सारिखाश्रन्न स्वर्णके पात्र में भोजन करे हैं सो सब धर्म रसायन काफल मुनियोंने कहा है और जो देवोंका अधिपति इन्द्र और मनुष्यों का अधिपति चक्रवर्ती तिनका पद भव्यजीव पावे हैं सो सब जीवदयारूप बेलका फलहे कैसे हैं भव्यजीवकर्मरूप कंजरको शार्दूलसमान हैं और राम कहिये बलभद्र केशव कहिये नारायण तिन के पद जो भव्य जीव पावें हैं सो सब धर्म काफल है
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teriतर हे श्रेणिक गे बासुदेवों का वर्णन करिये है सो सुनो इस अवसर्पकाल के भरत क्षेत्र के नववासुदेव हैं प्रथम ही इनके पूर्वभव की नगरियों के नामसुनो हस्तनागपुर १ अयोध्या २ श्रावस्ती ३ कोशांबी ४ पोदनापुर ५ शैलनगर ६ सिंहपुर ७ कौशांबी- हस्तनागपुर ध्ये नवही नगर कैसे हैं सर्वही
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