Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
पुराण
३६२॥
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है सुबकुम्भ १ सत्यकीर्ति २ सुधर्म ३ मृगांक ४ श्रुतिकीर्ति ५ सुमित्र६ भवनश्रुतः सुव्रत ८ सिद्धार्थ ६ यह बलभद्रों के गुरुवों के नाम कहे महातपके भार कर कर्मनिर्जरा के करणहारे तीन लोक में प्रकट है कीर्ति जिनकी नवबलभद्रों के आठ तो कर्मरूप बन को भस्म कर मोच प्राप्त भए कैसा है सन्सार वन आकुलता को प्राप्त भए हैं नाना प्रकार की व्याधि कर पीड़ित प्राणी जहां और वह वन काल रूप जो व्याघ्र उससे अति भयानक है और कैसा है यहबन अनन्त जन्मरूप जे कंटक वृक्ष तिनका है समूह जहां विजय बलभद्र आदि श्री रामचन्द्र पर्यन्त आठ तो सिद्ध भए और रामनामा जो नवम बलभद्र वह ब्रह्मस्वर्ग में महाऋद्धि के धारी देव भए ।
अथानन्तर नारायणों के शत्रुजे प्रति नारायण तिनकेनाम सुनो अश्वग्रीव १ तारक २ मेरक ३ मधुकैटभ ४ निशुंभ ५ बाले ६ प्रल्हाद ७ रावण जरासिन्ध अब इन प्रतिनारायणों की राजधानियों के नाम सुनो, अलका १ विजयपुर २ नन्दनपुर ३ पृथ्वीपुर ४ हरिपुर ५ सूर्यपुर ६ सिंहपुर ७ लंका ८ राजगृही ये नौही नगर कैसे हैं महारत्न जड़ित अति देदीप्यमान स्वर्ग लोक समान हैं ।
हे श्रेणिक प्रथमही श्री जिनेंद्रदेवका चरित्र तुझे कहा फिर भरत आदि चक्रवर्तियों का कथन कहा और नारायण बलभद्र तिनका कथन कहा इनके पूर्व जन्म सकल वृतांत कहे और नवही प्रतिनारायण तिनके नाम कहे ये त्रैसठ शलाकाके पुरुषहै तिनमें कैयक पुरुष तो जिन भाषित तपसे उसही भवमें मोक्षको प्राप्त होय हैं कैयक स्वर्ग प्राप्त होय हैं पीछे मोक्ष पावे हैं और कैयक जे वैराग्य नहीं घरे हैं चक्री तथा हरि प्रतिहरिते कैयक भवधर फिर तपकर मोचको प्राप्त होय हैं ये संसार के प्राणी नानाप्रकार के जे पाप
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