Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म पुराण
॥ ३५८॥
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सो रूपके अतिशय गर्वित तिनके बिवाहकी इच्छा नहीं सो विद्याधर तिनको हर लेगये सो चक्रवर्ती छुड़ाय मंगाई ही कन्या आर्यिका के व्रतधर समाधि मरणकर देवलोक में प्राप्त भई और अ विद्यावर इनको लेगएथे वेभी विरक्त होय मुनिन्त घर आत्मकल्याण करते भए यह वृतांत देख महा पद्म चक्रवर्ती पद्मनामा पुत्रको राज्य देय विष्णु नामा पुत्र सहित वैरागी भए महा तपकर केवल उप जाय मोचको प्राप्त भए यह अरनाथ स्वामी के मुक्तिगए पीछे और मल्लिनाथके उपजने से पहिले मुभूाम के पीछे भए और विजयनामा नगर विषे राजा महेंद्रदत वह अभिनन्दन स्वामी के शिष्य मुनि होय महेंद्र स्वर्गकोगए वहांसे चयकर कपिल नगर में राजा हरिकेतु उसके राणी वप्रा तिनके हरिषेण नामा दसवें चक्रवर्ती भए तिनने सर्व भरतक्षेत्र की पृथ्वी चैत्यालयों कर मंडित करी और मुनि सुव्रतनाथ स्वामी के तीर्थ में मुनि होय सिद्धपदको प्राप्त भये और राजपुरनामा नगर में राजा जो सीकांत थे वह सुधर्म मित्र स्वामी के शिष्य मुनि होय ब्रह्मस्वर्ग गये वहांसे चयकर राजा विजय राणी यशोवती तिनके जयसेननामा ग्याखें चक्रवर्ती भए वे राज्य तज दिगम्बरी दी चाधर रत्नत्रय का आराधनकर सिद्ध पदको प्राप्त भये । यह श्रीमुनिसुव्रतनाथ स्वामी को मुक्ति गए पीछे नमिनाथ स्वामी के अन्तराल में भवे और काशीपुरी में राजा सम्भूत वे स्वतन्त्रलिंगस्वामी के शिष्य मुनि होय पद्मयुगल नामा विमान में देव भये वहां से चयकर कपिलनगर में राजा ब्रह्मरथ राणी चूला तिनके ब्रह्मदत्तनामा बाखें चक्र भये खंड पृथ्वीका राज्यकर मुनित्रत बिना रौद्रध्यानकर सातवें नरकगये यह श्रीनेमनाथ स्वामीको मुक्ति गये पीछे पार्श्वनाथ स्वामी के अन्तराल में भये ये बारह चक्रवर्ती बड़े पुरुषहैं वै खंड
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