Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुराग
सर्वार्थ सिद्धको पधारे वहांसे चयकर हस्तनागपुर में राजा विश्वसेन राणी ऐरा तिनके शान्तिनाथ नामा॥३५७०
सोलवें तीर्थंकर और पंचम चकूवत्ति भये जगत्कोशान्तिके करणहारे जिनका जन्म कल्याणक सुमेरु पर्वत पर इन्द्रने किण फिर पट्खण्डके भोक्ताभए तृणसमान रज्यको जान तजा मुनिव्रतधर मोक्षगये फिरकुंथुनाथ छठेचक्रवतों सतरवें तीर्थंकर और अरनाथ सातवेंचक्रवर्ती अाठावं तीर्थंकर वे मुनिहोय निर्वाण पधारे सो इनकावर्णन तीर्थंकरोंके कथनमें पहिले कहाही है और ध्यानपुर नगरमें राजा जनकप्रभ सो विचित्रगुप्त स्वामी के शिष्य मुनिहोय स्वर्ग गये वहांसे चयकर अयोध्यानगरी में राजाकीर्तिवीर्य राणी तारा तिनके सुभमि नामा अष्टम चक्रवर्ति भये जिस से यह भूमि शोभायमान भई तिनके पिता का मारणहारा जो परशराम उसने क्षत्री मारे थे और तिनके सिर थंभनमें चिनायेथे सोसभमि अतिथिका। भेषकर परशुराम के भोजनको आये परशुरामने निमित्त ज्ञानी के वचनसे दांतपात्र में मेल सुभूमिको । दिखाये तब दांत क्षीर का रूप होय परणाये और भोजन का पात्र चक्र होय गया उस कर परशराम, को मारा परशुराम नेक्षती मार पृथिवी निक्षत्री करी सो सुभूमि परशुराम को मार दिज वर्ग से। द्वेष किया पृथ्वी अब्राह्मण करी जैसे परशुरामके राज्यमें चत्रीकुल छिपाए हुएथे तैसे इस राज्यमें विप्र । अपने कुल छिपाए रहे सो स्वामी अरनाथके मुक्ति गए पीछे और माल्लनाथके होय वे पहिले सुभूमिमए । अतिभोमासक निर्दयपरिणामी अबती मरकर सातवें नरक गये और बीतशोका नगरीमें राजाचिंत सो। मुप्रभस्वामीके शिष्य मुनि होय ब्रह्मस्वर्ग गए वहांसे चयकर हस्तिनागपुर विषेराजा पद्मरथ राणी मयूरी || तिनके महापद्म नामा नाम चक्रवर्ती भए षटखंड पृथ्वीके भोक्ता तिनके पाठ पुत्री महा रूपवती ।
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