Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥३५॥
पन || का लाख कोड़वां भाग तेरखें की पल्य का दस लाख कोड़वां भाग चौदहवें की कोटि पूर्व की आयुभई ॥
अथानन्तर हे श्रेणिक अब तू बारह जे चक्रवर्ती तिन की वार्ता सुन, प्रथम चक्रवर्ती इस भरत क्षेत्र का अति भरत १ श्री ऋषभदेव के यशावती राणी उनको नन्दाभी कहे हैं उसके पुत्र भया पूर्वभव विषे पुंडरीकनी नगरी विषे पीठ नाम राजकुमार थे वे कुशसेन स्वामी के शिष्य होय मुनिव्रत धर सर्वार्थ सिद्धि गए वहां से चयकर षट् खण्ड का राज्य कर फिर मुनि होय अन्तर्महूर्तमें। केवल उपजाय निर्वाण को प्राप्त भए फिर पृथिवीपुर नामा नगर विषे राजा विजय तेज यशोधर नामा मुनि के निकट जिनदीक्षा घर विजयनाम विमान गए, वहां से चयकर अयोध्या विषे राजा विजय राणी सुमंगला तिनके पुत्र सगर नाम दीतिय चक्रवर्ती भए, वे महा भोगकर इन्द्र समान देव विद्याघरों से धारीये है आज्ञाजिन की वे पुत्रों के शोक से राज्यका त्यागकर अजितनाथके समोशरण में मुनिहोय केवल उपजाय सिद्ध भए और पुन्डरीकनी नामा नगरी विषे एकराजाशशिप्रभ वह विमल.स्वामीका शिष्य होय बेयकगया वहांसेचयकर श्रावस्ती नगरी में राजा सुमित्राणी भद्रवती तिनके पुत्र मघवानाम तृतीय, चक्रवर्तीभए. लक्ष्मीरूप बेलके लिपटने को बृक्ष वे श्रीधर्मनाथके पीछे शान्तिनाथ के उपजनेसे पहिलेभए समाधान रूप जिनमुद्राधार सौधर्म स्वर्ग मए फिरचौथे चक्रवर्तीजो श्रीसनत्कुमारभए तिनकी गौतमस्वामी ने बहुतबड़ाई करी तब राजो श्रेणिक पूछते भए हे प्रभो ! वे किस पुण्यसे ऐसे रूपवान् भए तब उनका चरित्र संक्षेपता कर गणधर कहतेभए कैसाहै सनत्कुमार का चरित्र जो सौवर्ष में भी कोऊ कहिनेको समर्थनहीं । यह जीव जवलग जैनधर्म को नहीं प्राप्त होयहै तबलग तर्यश्च नारकी कुमानुष कुदेव गतिमेंदुःख भोगे |
For Private and Personal Use Only