Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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॥३४२०
कर शोषण, सन्तापन, उच्चाटन, माहेन, वरीकरण कामके यह पंचवाणोंसे बेघी गई तब उसे हनु मान विष अनुरागिनी जान सखीजन उसके गुण बरणन करती भई हे कन्या यह पवनंजयका पुत्र
जो हनुमान इसके अपारगुण कहां लो कहें और रूप सोभाग्य तो इस के चित्रपट में तैंने देखे इस लिये इसको बर, माता पिता की चिन्ता निवार कन्या तो चित्रपटको देख मोहित भई थी और सखी जनों ने गुण वरणन किया ही है तब लजाकर नीची हो गई और हाथ में क्रीड़ा करने का कमल था उस की चित्रपटकी दी तबसब ने जाना कि यह हनुमान से प्रीतिवन्ती भई तब इस के पिता सुग्रीव ने इस का चित्रपट लिखाय भले मनुष्य के हाथ वायु पुत्र पै भेजा सो सुग्रीव का सेवक श्रीनगर में गया और कन्या का चित्रपट हनुमानको दिखायो सोअंजनी का पुत्र सुताराकी पुत्रीके रूप का चित्रपट देखमोहित भया यह बात सत्यहै के काम के पांच ही बाण हैं परन्तु कन्याके प्रेरेपवनपुत्र के मानो सौ याण होय लगे वित्तमें चिंतवता भया मैं सहस्र विवाह किए और बड़ीबड़ी ठौर परणा खरदूषण की पुत्री रावणकी भाषजी परणी तथापि जवलग यह पद्मरागा न पर) तौलग परणाही नहीं ऐसा विचार महाऋद्धिसंयुक्त एकक्षणमें सुप्रीवके पुर में गया सुग्रीव ने सुना जो हनुमान् पधारे तव सुग्रीव अतिहर्षित होय सन्मुखाए बडेउत्साह से नगरमें लेगए सो राजमहल की स्त्री झरोखों की जाली से इन का अद्भुत रूप देख सकल चेष्टा तजश्राश्र्य रूप होय गई
और सुग्रीव की पुत्री पद्मराग इन के रूपको देखकर थकित हो गई कैसी है कन्या अति सकुमार है शरीर | जिस का बड़ी विभूति से पवनपुत्र से पद्मरागा का विवाह भया, जैसा बर तैसी दुलहन सो दोनों अतिहर्ष को प्राप्तभए स्त्रीसहित हनुमान् अपने नगरमें आए राजा सुग्रीव और राणीतारापुत्री के वियोग से कैएक
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