Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म पुराण
पदमस्थ १५ दृढ़रथ १६ मेघरथ १७ सिंहस्य १८ वैश्रवण १६ श्रीधर्मा २० सुरश्रेठ २१ सिद्धार्थ २२ श्रानन्द २३ ३४४६ सुनन्द २४ ये तीर्थंकरों के इस भव पहिले तीजे भवके नाम कहे अब इनके पूर्वभव के पितावों के नाम सुनो, बज्रसेन १ महातेज २ रिपदम ३ स्वयंप्रभ ४ बिमलवाहन ५ सीमंदर ६ पिहताश्रव ७ अरिदम युगन्धर सर्वजनानन्द १० अभयानन्द ११ वज्रदन्त- १२ बज्रनाभि १३ सर्वगुप्ति १४ गुतिमान् १५ चिन्तारच १६ बिमलवाहन १७ घनख १८ धीर १६ संबर २० त्रिलोकीरराव २१ मुनन्द २२ वीतशोक २३ प्रोष्ठि २४ पूर्वभव के पिताओं के नाम कहे। चौबीसो तीर्थंकर जिस देवलोक से आये तिनंदव लोकों के नाम सुनो। सर्वार्थसिद्ध वैजयन्त २ मैवेयक ३ वैजयन्त ४ ऊर्धप्रैवेयक ५ वैजयन्त ६ मध्ययैवेक ७ वजयन्त अपराजित रणस्वर्ग १० पुष्पोत्तरविमाण ११ कापिष्टस्वर्ग १२ शुक्रस्वर्ग १३ सहस्रारस्वर्ग १४ पुष्पोत्तर १५पुष्पोत्तर १६ पुष्पोत्तर १७ सर्वार्थसिद्धि १८ विजय १६ अपराजित २० प्राणत २१ वैजयन्त २२ थान २३ पुष्पोत्तर २४ ये चौवीस तीर्थंकरोंके आवने के स्वर्ग कहे। अब यागे चौवीस तीर्थंकरों की जन्मपुरियें जन्म नक्ष
माता पिता और वैराग्य के वृक्ष और मोक्ष के स्थानक मैं कहूं हूं सो सुनो। अयोध्यानगरी पिता नाभिराजा माता मरुदेवी राणी उत्तराषाढ नक्षत्र वटवृक्ष, कैलाश पर्वत प्रथमजिन हे मगधदेश के भूपति ! तुझे प्रतीन्द्रि सुख की प्राप्ति करें ? अयोध्यानगरी जितशत्रु पिता विजिया माता रोहिणी नक्षत्र सप्तदवृक्ष सम्मेदशिखरं अजितनाथ हे श्रेणिक तुझे मंगल के कारण होवें २ श्रावस्ती नगरी जितारि पिता सैना माता पूर्वाषाड़ नक्षत्र शालवृक्ष सम्मेदशिखर संभवनाथ ते रे भव बन्धन हरे ३ अयोध्यापुरी नगरी संवर पिता, सिद्धार्था माता पुनर्वसु नक्षत्र, सालवृक्ष सम्मेदशिखर अभिनन्दन तुझे कल्याणके कारण होवें ४ । आायोध्यापुरी नगरी मेघप्रभ पिता
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