Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥३४॥
के पूर्व भव सहित सकल चरित्रसुना चाहूं हूं कैसा है तिन का चरित्र बुद्धि की निर्मलता का कारण | है और आठवें बलभदजे श्रीरामचन्द्र, सकल पृथिवी विषे प्रसिद्ध सो कौन बंश विषे उपजे तिन का चरित्र ।
कहो और तीर्थंकरोंकेनाम और उनके माता पितादिक के नाम सब सुनने की मेरी इच्छा है सो तुम कहने योग्यहो इस भान्ति जब श्रेणिक ने प्रार्थनाकरी तब गौतम गणधर भगवन्त चरित्रके प्रश्नकरबहुतहर्षित भए कैसे, गणधर महाबुद्धिवान् परमार्थ विषेप्रवीण सो कहे हैं कि हे श्रोणिक चौवीस तीर्थंकरोंके पूर्वभव का कथन पापके विध्वंस का कारण इन्द्रादिक कर नमस्कार करने योग्य तू सुन, ऋषभ १ अजित २ संभव३ अभिनन्दन सुमति ५ पदमप्रभ६सुपार्श्व७ चन्द्रप्रभ ८ पुष्पदन्त जिसका दूजानाम सुविधिनाथ भी कहीए ६ शीतल १० श्रेयांस ११ वासुपूज्य १२ बिमल १३अनन्त १४ धर्म १५ शान्ति १६ कुन्थ १७ अर १८ मल्लि १६ मुनिसुव्रत २० नमि २१ नेमि २२पार्व २३ महावीर २४ जिन का अब शासन प्रवरते है ये चौबीस तीर्थंकरों के नाम कहे अब इनकी पूर्वभव को नगरीयों के नाम मुनो।पुण्डरीकनी १ सुसीमार क्षेमा ३ रन्तसंचयपुर ४ ऋषभदेवादिबासुपूज्य पर्यंत को ये चार नगरीपूर्वभव के निबासकी जाननी और महानगर १३ अरिष्टपुर १४ मुमद्रिका १५ पुण्डरीकनी १६ सुसीमा १७ क्षेमा १८ वीतशोका १६ चम्पा २० कौशांबी २१ नागपुर २२ साकेता २३ छत्राकार २४ये चौबीस तीर्थंकरोंकी इसमवके पहिले जो देवलोक उस भव पहिले जो मनुष्य भव उसकी स्वर्गपुरी समानराजधानी कहीं। अब उस भवके नामसुनो बज्रनाभि ? बिमलबाहन रविपुलख्याति ६ विपुलबाहन ४महाबल ५ अतिबल ६ अपराजित ७ नन्दिपेमा ८ पद्म । || महापद्म १० पदमोत्तर ११पंकजगुल्म १२कमल समानहै मुख जिसका ऐसा बलिनगुल्म १३ पदमासन १४
For Private and Personal Use Only