Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
॥३५१।
सुब्रतनाथ भए उनके पीछे छहलाख वर्ष गए श्रीनमिनाथ भए उनके पीछे पांच लाख वर्ष गए श्री नेमिनाथ भए उनके पीछे पौने चौरासी हजार वर्ष गए श्री पार्श्वनाथ भए उनके पीछे अढ़ाईसौ वर्ष गए श्री वर्द्धमान भए जब वर्द्धमानस्वामी मोतको प्राप्त हावेंगे तब चौथे कालके तीन वर्ष साढ़े पाठ महीना बाकी रहेंगे और इतनेही तीजे कालके बाकी रहे थे तब श्री ऋषभदेव मुक्ति पधारे थे। ___ अथानंतर धर्मचक्रके अधिपति श्रीवर्द्धमान इन्द्रके मुकटके रत्नोंकी जो ज्योति सोई भयाजल उससे घोएहेंचरणयुगल जिनके सो तिनको मोक्षपधारे पीछे पांचवांकाल लगेगा जिसमें देवोंका आगम नहीं
और अतिशयके धारक मुनि नहीं केवलज्ञानकी उत्पति नहीं चक्रवर्ती बलभद्र और नारायणकी उत्पति नहीं तुम सारिखे न्यायवान राजानहीं अनीतिकारी राजा होवेंगे और प्रजाके लोक दुष्ट महाढीठ परधनहरने को उद्यमी होवेंगे शील रहित व्रतरहित महा क्लेश व्याधिके भरे मिथ्यादृष्टि घोरकर्मी हावेंगे और अति वृष्टि अनादृष्टि टिड्डी सूवामूषकअपनीसेनाऔरपराई सेनाये जो सप्त ईतिये तिनका भय सदाहीहोयगा मोह रूपमदिराके माते रागद्वेषके भरे भौंहको टेढ़ी करनहारैऋरदृष्टिपापी महामानी कुटिलजीवहावेंगे कुवचन : के बोलनहारे क्रूरजीव धनके लोभी पृथ्वीपर ऐसे विचरेंगेजैसे रात्री विषे घूध विचरें और जैसे पट वीजना चमत्कारकरे तैसे थोड़ेही दिन चमत्कार करेंगे वे मूर्खदुर्जन जिनधर्मसे पराङ्मुख कुधर्म विषे श्राप प्रवरतेंगे। औसको प्रवरतावेंगे परोपकार रहित पराए कार्यों में निरुद्यमी पाप डूबेंगे औरों को डबोवेंगे वे दुर्गति गामी श्रापको महन्त मानेगे के क्रूर कर्म मदोन्मत्त अनयंकर मानाहे हर्ष जिन्होंने मोहरूप अंधकारसे | अंधे कलिकालके प्रभावसे हिंसारूप जे कुशास्त्रवेई भए कुठार तिनसे अज्ञानी जीवरूप वृत्तोंको काटेंगे |
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