Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म पुराण ॥३४॥
पर जन्माभिषेकमया सबहीके पंचकल्याणक प्रकटभये सम्पूरण कल्याणकी प्राप्तिकी कारणहै सेवा जिनकी वे जिनेन्द्र तेरी अविद्या हरें इसभांति गणधर देवने वर्णन किया। ___ अथानन्तर राजाश्रेणिक नमस्कारकर विनती करतेभए कि हे प्रभू छहों काल की वर्तमान श्रायु का प्रमाण कहो और पापकी निबृत्तिका कारण परम तत्व जो अात्मस्वरूप उसका वर्णन बारम्बारकरो और जिस जिनेंद्र के अन्तराल में श्रीरामचन्द्र प्रकटभए सो आपके प्रसादसे में सर्व वर्णन सुना चाहूं हूं ऐसा जब श्रेणिक ने प्रश्न किया तब गणधरदेव कहतेभए कैसे हैं गणधरदेव क्षीरसागरके जल समान निर्मल है चित्त जिनका हे श्रेणिक कालनामा द्रव्यहै सो अनन्त समयहै उसकी प्रादि अन्तनहीं उसकी संख्या कल्पनारूप दृष्टांतसे पल्यसागरादि रूप महामुनि कहेहैं एक महायोजन प्रमाण लंबाचौड़ा गामोलगर्त (गढ़ा ) उत्कृष्टि भौगभूमि का तत्कालका जन्माहुवा भेड़काबच्चा उसके रोमके अग्रभागसे भरिए सोगत || घनागाढ़ा भरिये और सौ वर्षगए एक रोम काढे सो ब्योहारपल्य कहिये सोयह कल्पना दृष्टांतमात्रहै किसी ने ऐसा कियानहीं इससे असंख्यात गुणी उद्धारपल्यहै इससेसंख्यातगुणीअर्धापल्यहै ऐसी दसकोटा कोरि पल्य जांय तब एक सागरकहिये और दस कोटाकोटि सागरजाय तब एक अवसर्पिणी कहिये और दस । कोटाकोटि सागरकीएक उत्सर्पिणी और बीसकोटयकोटि सागरका कल्पकाल कहिये जैसेएक मासमें शुक्लपक्ष।
औरकृष्णपक्ष ये दोय वर्ते तैसे एक कल्पकाल विषे एक अवसर्पणी और एक उत्सर्पणी ये दोय वर्ते इनके प्रत्येक प्रत्येक छहछह कालहें तिनमें प्रथम सुखमासुखमाकाल चार कोटाकोटि सागरकाहै दूजा सुखमाकाल | तीन कोटाकोटि सागरका है तीजासुसमा दुखमादो कोटयकोटि सामरकाहै और चौथा दुखमासुखमाकाल ।
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