Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥३२॥
अथानन्तर गणघरदेव राजा श्रेणिकसे कहेह हे नृप !प्राणियोंकेपूर्वोपार्जित पुण्यके प्रभावसे गिरोंका पुराण
चूरण करनहारा महाकठोर जो वसोभी पुष्पसमान कोमलहोय परणवे हैं और महा आतापकी करनहारी | जोअग्नि सोभी चन्द्रमा की किरण समान तथा विस्तीर्ण कमलनीके बन समोन शीतल होयहै और महा तीक्षण खड्गकी धारा सो महामनोहर कोमल लता समान होयहे ऐसा जानकर जे विवेकी जीवहें वे पापसे विरक्त होयह कैसा है पाप महा दुख देनेमें प्रवीणहै तुम श्रीजिनराजके चरित्रविषेअनुरागी होवो कैसाहै जिन
राजका चरित्र सारभूत जो मोक्षका सुख उसके देनेविषे चतुरहे यह समस्त जगत् निरन्तर जन्मजरा मरण | रूप सूर्यके आतापसे तप्तोयमानहै उसमें हजारोंजे व्याधिहें सोइकिरणों का समूहहै। इति सतरखापर्व संपूर्णम् ___अथानन्तर गौतमस्वामी राजाश्रेणिकसे कहे हे हे मगधदेश के मण्डन यह श्रीहनूमानजी के जन्म को वृत्तांत तो तुझे कहा अब हनूमानके पिता पवनंजय का वृत्तान्त सुन पवनंजय पवनकी न्याई शीघ्रही रावणपै गयो और रावणकी आज्ञा पाय वरुणसे युद्ध करता भया सो बहुत देरतक नाना प्रकारके शस्त्रों
से वरुण के और पवनंजय के युद्ध भया सो युद्ध विषे.वरुण को पवनंजय ने बांध लिया तब उसने | जो खरदूषणको बांधाथा सो छुड़ाया और वरुणको रावण के समीप लाया, वरुणने रावणकी सेवाअंगीकार करी रावण पवनंजय से अति प्रसन्न भए तब पवनंजय रावणसे विदा होय अंजनी के स्नेहसे शीघ्र ही घरको चले राजा प्रल्हाद ने सुनी कि पुत्र विजय कराया तब ध्वजा तोरणमालादिकों से नगर शोभित किया तव सवही परिजन पुरजन लोग सनमुख प्राय नगर के सर्वनर नारी इनके कर्तव्यकी प्रशंसाकरें राजमहल के द्वारे अर्घादिक कर बहुत सन्मान कर भीतर प्रवेश कराया सारभूत मंगलीकवचनों से कुंवर की
For Private and Personal Use Only