Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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॥३३४.
पम || के शरीरकी कांतिकर प्रकाशरूप होयगई मानो मुवर्णकी रची है यह बात सुनकर पवनंजय परमहर्ष
को प्राप्त भए और प्रतिसूर्यको पूछतेभए बालक मुखसे है तब प्रतिसूर्यने कही बालकको में बिमानमें थापकर हनूरुहद्वीपको जाऊंथा सो मार्गमें बालक एक पर्वतपर पड़ा सो पर्वतके पड़नेका नाम सुन कर पवनंजयने हायहाय ऐसा शब्द कहा तवप्रतिसूर्यने कही सोच मतकरो जो वृतांत भया सो सुनो जिस से सर्व दुखसे निवृति होय वालकको पडा देख में विमानसे नीचे उतरा तव क्या देखा पर्वतके खंड २ । हो गए और एक शिलापर बालक पड़ाहै और उसकी ज्योति कर दशों दिशा प्रकाशरूप होय रही हैं तब मैंने तीन प्रदक्षिणा देय नमस्कारकर बालकको उठाय लिया और माताको सौंपा सो माता अति विस्मय को प्राप्त भई पुत्रका श्रीशैलनाम धरा बसंतमाला और पुत्र सहित अंजनीको हनुरुहद्वीप ले गया वहां पुत्रका जन्मोत्सव भया सो बालकका दूजा नाम हनुमान भी है यह तुमको मैंने सकल वृतांतकहा हमारेनगरमें वह पतिव्रता पुत्रसहित आनन्दसे तिष्ठे हैं यह वृतांत सुनकर पवनंजय तत्काल अंजनीके अवलोकनके अभिलाषी हनुरुहद्दीपको चले और सर्वविद्याधरभी इनके संगचलेहनूरुहद्वीपमेंगए
सो दोय महीना सबको प्रतिसूर्यने बहुत अादरसे राखा फिर सब प्रसन्नहोय अपने २ स्थानकको गए बहुत | | दिनों में पाया है स्त्रीका संयोग जिसने सो ऐसा पवनंजय यहांही रहे कैसाहै पवनंजय सुंदर है चेष्टा जिसकी और पुत्रकी चेष्टासे अति सुन्दररूप हनूरुहद्वीपमें देवनकी न्याई रमते भए हनूमान् नव यौवनको प्राप्त भए मेरुके सिखर समान सुन्दर है सीस जिनका सर्वजीवोंके मनके हरण हारे होते भए सिद्ध भई है अनेक विद्या जिनको और महा प्रभावरूप विनयवान् बुद्धिमान् महाबली सर्व शास्त्र के अर्थ विषे प्रवीन
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