Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पण | परोपकार करनेको चतुर पूर्वभव स्वर्गमें सुख भोग पाए अब यहां हनुरुह द्वीप विषेदेवों की न्याई रमें हैं। | E. हेश्रेणिकगुरु पूजा में तत्पर श्रीहनूमान् के जन्मका वर्णन और पवनंजय काअंजनीसे मिलाप यह अद्भुत
कथा नाना रसकी भरी है, जे प्राणी भावधर यह कथा पढें पढ़ावें सुने सुनावें उनकी अशुभ कर्ममें प्रवृत्ति न होय || शुभक्रिया के उद्यमी होय और जो यह कथा भावधर पढ़ें पढ़ावें उनकी परभव में शुभगती विधि दीर्घ आयु
होय, और शरीर निरोग सुन्दर होय महापराक्रमी होंय और उनकी बुद्धि करने योग्य कार्यके पारको प्राप्त होय और चन्द्रमा समान निर्मलकीर्ति होय और जिस से स्वर्ग मुक्तिके सुख पाइये ऐसे धर्म की बढ़वारी होय जो लोक में दुर्लभ वस्तु हैं सो सब सुलभ होंय सूर्य समान प्रताप के घारक होय। इति अठारखां पर्व सपूर्णम्।
अथानंतर राजा वरुण फिर आज्ञालोप भया तब कोप कर उसपर रावण फेर चढ़ा सर्व मूभि गोचरी विद्याधरों को अपने समीप बुलवाया सबके निकट आज्ञा पत्र लेय दूतगए कैसाहै रावण राज्य कार्यों में निपुण है किहकंधापुर के धनी और अलंकारी के धनी रथनू पुर और चक्रबालपुर केधनी तथा वैताब्य की दोनोंश्रेणी के विद्याघर तथा भूमिगोचरी सबही आज्ञा प्रमाण रावणके समीपाए हनूरूह द्वीप में भी प्रतिसूर्य तथा पवनंजय के नाम प्रोज्ञा पत्र लेय दूत आए सो ये दोनों आज्ञा पत्रको माथे चढ़ाय दूत का बहुत सन्मान कर प्राज्ञा प्रमाण गमनके उद्यमी भए तव हनुमान को राज्याभिषेक देने लगे बादित्रादिक के समूह बाजनेलगे और कलश हैं जिनके हाथमें ऐसे मनुष्य आगे आय ठाढ़े भए || तब हनुमान ने प्रतिसूर्य और पवनंजय से पूछा यह क्या है तब उन्होंने कही हे वत्स हनुरूहद्वीप का । प्रतिपालन कर हमदोनों को रावण बुलावें है सो जांय हैं रावण की मदद के अर्थरावण वरुण पर जाय
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