Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पत्र || के लहलहाट से मानों तेरे विराजने से महाहर्ष को प्राप्त भएनृत्य ही करे हैं अब प्रभातका समय भयाहे पहिले s, तो आरक्त सन्ध्या भई सो मानों सूर्य ने तेरी सेवा निमित्त पठाई और अब सूर्य भी तेरा दर्शन करने के अर्थ
| मानों उदय होने को उद्यमी भयाहै यह प्रसन्न करने की बात बसन्तमालाने जब कही तव अंजनी सुन्दरी | कहती भई हे सखीतेरे होते सन्तेमे रे निकटसर्बकुटुम्ब है और यह बन ही तेरे प्रसाद से नगर है जो इसप्राणीको
आपदामें सहाय करे है सोही बांधव है और जो वांघव दुःखदाताहै सोही परम शत्रुहै इस भान्ति परस्पर मिष्ट संभाषण करती ये दोनों गुफा में रहें श्रीमुनिसुव्रतनाथ की प्रतिमा का पूजन करें विद्या के प्रभाव से बसंतमाला खान पान आदि भली विधि सेती सब सामग्री करे वह गंधर्व देव सर्व प्रकार इनकी द्रुष्ट जीवों से रक्षा करे और निरन्तर भक्ति से भगवान् के अनेक गुण नानाप्रकार के रोग रचना से गावे॥
अथानन्तर अंजनी के प्रसूतिका समय आया तब बसंतमालाको कहती भई हे सखी आज मेरे कछु ब्याकुलता है तब बसंतमाला बोली हे शोभने तेरे प्रसूति का समय है तू आनन्द को प्राप्त हो तब इसके लिये कोमल पल्लवों की सेज रची उस पर इसके पुत्रका जन्मभया जैसेपूर्वदिशासूर्यकोप्रकटकरेतैस यह हनूमान् को प्रकट करती भई पुत्र के जन्म से गुफा का अंधकार जाता रहा प्रकाशरूप होय गई मानोंसुवर्णमई ही भई तब अंजनी पुत्रको उरसे लगाय दीनता के वचन कहती भई कि हे पुत्र तूगहनबनमें उत्पन्न भयो तेरे जन्मका उत्सव कैसे करूं जो तेरादादे के तथा नानेके घर जन्म होतातो जन्मका बड़ा उत्सव होता, तेरा मुखरूप चन्द्रमा देख कौनको आनन्द न होय में क्याकरूं मन्दभागिनीसर्ववस्तु रहित हूं देव कहिये पूर्वोपार्जित कर्म ने मुझऐसी दुःखदायिनी दशाको प्राप्त करी जो में कछुकरनेको समर्थ नहीं हूं।
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