Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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॥३२॥
पहा | ह महासुभाव तुम्हारे बचनही से तुम्हारे मनकी शुद्धता जानी जाय है जै दाह के नाशका मूल जो
चन्दनका वृक्ष उसकी छायाभी सुन्दर लगे है तुम सारिखे जे गुणवान पुरुषहें सो शुद्धभाव प्रकट करने के स्थानक हैं आप बड़े हो दयालहो यदि तुम्हारे इसके दुःख मुनने की इच्छा है तो सुनो मैं कहूंहूं तुम सारिखे बड़े पुरुषों से कहाहुवा दुःख निवृत्त होयहे तुम दुःखहारी पुरुषहो तुम्हारा यह स्वभावही है कि श्रोपदा विर्षे महायकरो सो सुनो यह अंजनी सुन्दरी राजा महेन्द्रकी पुत्री है वह राजा पृथिवीपर प्रसिद्ध .महा यशवान नीतिवान निर्मल स्वभाव है और राजा प्रल्हादका पुत्रपवनंजय गुणोंका सागर उसकी । प्राणहूसे प्यारी यह स्त्री है सो पवनंजयएक समय बापकी प्राज्ञासे आपतोरावणके निकट वरुणासे युद्धके अर्थ विदाहोय चले थे सो मानसरोवरसे रात्रिकोइसकेमहलमेंबाए और इसकोगर्भरहा सोइसकी सासूकाङ्करस्वभाव दयारहित महामूर्खथाही उसके चित्तमें गर्भका भर्म उपजा तबउसने इसको पिताके घर पठाई यह सर्वदोषरहित महासतीशीलवंती निर्विकारहै सोपिताने भी अकीर्तिके भयसेन राखी जे सज्जनपुरुषहें वे झूठेभी दोषसे डरें हैं यह बड़े कुलकी वालिका सर्वश्रालंबनरहित इस बनमें मृगीसमान रहे है मैं इसकी सेवा करूंहूं इनके कुल क्रमसे हम आज्ञाकारी सेवकहें इतबारी हैं और कृपापात्रहें सो यह श्राज इस बनमें प्रसूतभई है यह बन नाना उपसर्गका निवासहै न जानिए कैसे इसको सुख होयगा। हे राजन ! यह इसका बृतांत संक्षेपसे तुमसे कहा और संपूर्ण दुःख कहांतक कहूं इस भांति स्नेहसे पूरित जो वसंतमालाके हृदयका गगसी अंजनी के तापरूप अग्निसे पिगला और अंग में न समाया सो मानों बसंतमाला के बचन द्वारकर बाहिर । निकसा तब वह राजा प्रतिसूर्य हनूरुहनाम द्वीपका स्वामी बसंतमालासे कहताभया हे भव्य मैं राजा |
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