Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुराण
| परन्तु प्राणियों को सर्ववस्तु से दीर्घायु होना दुर्लभ है सो हे पुत्र!तू चिरञ्जीवहो तूहै तो मेरे सर्वहे यह
प्रोणोंका हरणहारा महागहन बन है इसमें जोमें जीवं हूं सो ते रेही पुण्यके प्रभावसे ऐसेदीनताके बचन ॥३२१".
अञ्जनी के मुख से सुनकर बसंतमाला कहतीभई कि हे देवी तूकल्याणपूर्ण है ऐसा पुत्रपाया यह सुन्दर लक्षण शुभरूप दीखे है बड़ी ऋद्धिका घारीहोगा तेरे पुत्रके उत्सवसे मानो यह वेलरूप बनितानृत्यकरें हैं चलायमान हैं कोमलपल्लव जिनके औरजोभ्रमर गुंजार करें हैं सो मानो संगीतकरें हैं यह बालक पूर्ण तेज है सोइसके प्रभाव से ते रे सकल कल्याण होगातूवृथा चिन्तावतीमतहो इसभान्ति इनदोनोंकेवचनालाप होतेभए ___ अथानन्तर बसन्तमालाने आकाशमें सूर्यके तेज समान प्रकाश रूप एक ऊंचा विमान देखा सो देख कर स्वामिनी से कहा तब वह शंकाकर विलाप करतीभई यह कोई निःकारण बैरी मेरे पुत्र को लेजाय | अथवा मेरा कोई भाई है तिनके विलाप सुन विद्याधर ने विमान थांभा दयासंयुक्त आकाशसे उतरा गुफाकेदार पर विमानको थांभ महा नीतिवान महा विनयवान शंका को घरता हुवा स्त्री सहित भीतर प्रवेश किया तब बसन्तमालाने देखकर भादरकिया यह शुभ मन विनयसे बैठा और चपएक बैठ कर महामिष्ट और गम्भीरवाणी कहकर बसन्तमालाको पूछताभया ऐसे गम्भीरवचन कहताभया मानो मयूरों को हर्षितकरता मेघही गरजा है सुमर्यादा कहिये मर्यादा की घरणहारी यह बाई किसकी बेटी किस से परथी किसकारण से महाबन में रहे है यह बड़ घरकी पुत्री है किसकारण से सर्वकुटुम्ब से रहित भई है | अथवा इस लोकमें रागदेष रहितजे उत्तमजीव हैं तिनके पूर्व कर्मों के प्रेरेनिःकारपबैरी होयहें तब वसन्त || माला दुःखके भारसे रुकगयाहै कण्ठ जिसका आंसू डारती नीची है दृष्टि जिसकी कष्टकर वचन कहतीभई
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