Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुराण
३२३॥
चित्रभानु और राणी सुन्दरमालिनाका पुत्रहूं अंजनी मेरीभानजी है मैंने बहुत दिनमें देखी सो पिछानी नहीं ऐसा कहकर अंजनीको बालावस्थासे लेकर सकल वृतांत कहकर गद्गद बाणीकर बचनालाप कर। आंसू डालता भया तब पूर्ण वृतान्त कहनेसे अंजनीने इसको मामा जान गले लग बहुत रुदन किया सो मानों सकल दुःख रुदनसहित निकस गया क्योंकि यह जगतकी रीतिहै कि हितु देखेसे अश्रुपात पड़े हैं वह गजाभी रुदन करने लगा और उसकी रानीभी रोवने लगी बसंतमालाने भी अति रुदन किया इन सबके रुदनसे गुफा गुंजार करती भई सो मानों पर्वतने भी रुदन किया जलके जे नीझरने वेई भए अश्रुपात उनसे सब बन शब्दमई होयगया बनके जीव जे मृगादि सोभी रुदन करते भए तब राजा प्रतिसूर्यने जलसे अंजनी का मुख प्रक्षालन कराया और आपभी जलसे मुख प्रक्षाला । बन भी शब्द रहित होगया मानों इनकीबार्ता मुनना चाहे है अंजनी प्रतिसूर्यकी स्त्रीसे क्षेमकुशल पूछती भई सो बड़ोंकी यही गतिहै कि जो दुःखमें भी कर्तब्यसे चुकें और अंजनी मामा से कहती भई हे पूज्य मेरे पुत्रका समस्त शुभाशुभ वृतांत ज्योतिषियोंसे पूछो तब सांवतसरनामा ज्योतिषी लास्याउस
को पूछा तब ज्योतिषीबोला बालकके जन्मकी वेलाबतावोतव वसंतमालाने कहाकियाजअर्धरात्रिगए | जन्म भयो है तबलग्नथापकर बालकके शुभलक्षणजान ज्योतिषी कहताभयाकि यहबालकमुक्तिकाभाजन
है फिर जन्म नधरेगा जो तुम्हारे मनमें संदेहहे तोमैं संक्षेपतासे कहूंहूं सो सुनो (१) चैत्रशुदी अष्टमी की (१) नोट-मूलनन्थ में मात्रादि दूसरीप्रकार वर्णन किए हैं परन्तु हम नहीं जा सक्त कि यह ग्रह ठीक हैं या मूल ग्रन्थ के
ठीक हैं इसकार का हमने भाषाग्रन्थ के मूजनही रक्खा है। मूल ग्रम्प के माफिक ग्रहादिक को भी ग्रन्छ के अन्त में हम लिखो, बुद्धिनाम विचार लेवें।
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