Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुराज
Ran
तिथि है और श्रवण नक्षत्रहे और मुयमेषका उच्चस्थानक विषेबैठाहै और चन्द्रमाहपका और मकरका मंगलहै और बुधमीनकाहै और वृहस्पति कर्ककाहै सो उच्चहै शुक्र तथा शनैश्चर दोनों मीनके हैं सूर्य । पूर्ण दृष्टिकर शनिको देखे है और मंगल दश विश्वा सूर्यको देखेहै और बृहस्पति पन्द्रह विश्वासूर्य । को देखे है और सूर्य दशविश्वा वृहस्पतिको देखेहै और चन्द्रमाको पूर्ण दृष्टि वृहस्पति देखे है और वृहस्पतिको चन्द्रमा देखे है और बृहस्पति शनिश्चरको पन्द्रह विश्वा देखे है और शनिश्चरबृहस्पति को दस विश्वा देखेहै और बृहस्पति शुक्रको पन्द्रहविश्वा देखे है और शुक्र वृहस्पतिकोपंद्रहविश्वादेखे है इसके सबहीग्रह बलवान बैठे हैं सूर्य और मंगजदोनों इसका अद्भुतराज्यनिरूपणकरे हे औरबृहस्पति
और शनिमुक्तिका देनहारा जो योगीन्द्रपद निर्णयकरे हैं जोएकवृहस्पतिही उच्चस्थान बैठाहोयतो सर्व कल्याणके प्राप्तिका कारणहै और ब्रह्मनामा योगहै और मुहूर्तशुभहै सो अविनाशीसुखकासमागम इसके होयगा इसभांति सबहीग्रह अतिबलवान बैठे हैं सोसर्वदोषरहित यह होयगा ऐसा ज्योतिषीनेजबकहा तब प्रतिसूर्य ने उसको बहुत दानदिया और भानिजीको अतिहर्ष उपजाया और कहाकि हे बत्से! अबहमसब हनूरुहद्वीपकोचलें वहां बालक का जन्मोत्सव भली भान्ति होयगा, तब अंजनी भगवान को बन्दनाकर पुत्र को गोदी में लेय गुफा का अधिपति जो वह गंधर्वदेव उससे बारम्बार क्षमा कराय प्रतिसूर्य के परिवार सहित गुफा से निकली और विमानके पास आई उभी रही मानों साक्षात् बनलक्ष्मी ही है कैसा है विमान मोतीयोंके
जेहार सोई मानों नीझरने हैं और पवन की प्रेरी क्षुद्रघण्टिका बाजरही,और लहलहाट करती जे रत्नों की | झालरी तिन से शोभायमान और केलि केवनों से शोभायमान है सूर्य के किरण के स्पर्श कर ज्योतिरूप
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