Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पन्न पुराण ॥२९॥
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अथानंतर राजा बरुण उसके रावणसे विरोध पड़ा वरुण महा गर्भवान रावणकी सेवा न करेसो / रावण ने दूत भेजा दुतजाय बरुणसे कहताभया दृतधनी की शक्तिकर महाकांति को धरे है अहो विद्याधराधिपते बरुण सर्वका स्वामी जो रावण उसने यह श्राज्ञा करी है कि आप मुझे प्रणाम करो अथवा युद्धकी तैयारी करो तब वरुणने हंसकर कहीहो दूत कौनहै रावण कहां रहेहै जो मुझे दवावेहै सो में इंद्र नहीं हूं वह वृथा गर्वित लोकनिन्द्य था मैं वैश्रवण नहीं मैं यमनहीं में सहसूरश्मि नहीं में मरुत नहीं रावणके देवाधिष्ठित रत्नोंसे महा गर्व उपजाहै उसकी सामर्थ है तो आयो में उसे गवरहित करूंगा औरतेरी मृत्युनजीकहै जो हमसे ऐसीबात कहे है तब दूतने जायकर रावणसे वृतांतकहा रावण ने कोपकर समुद्रतुल्य सेनासहित जाय वरुणका नगरघेरा और यह प्रतिज्ञाकरी कि मैं इसे देवाधिष्ठित रत्नों बिनाही बश करूंगा मारूं अथवा बांधू तब वरुणके पुत्र राजीव पुण्डरादिक क्रोधायमान होय रावणके कटकपर आए रावणकी सेनाके और इनके बड़ा युद्ध भया परस्पर शस्त्रोंका समूह छेद डारे हाथी हाथियोंसे घोडे घोड़ोंसे रथ रथोंसे भट भटोंसे महायुद्ध करतेभए बड़े २ सामंतहोंठ डसडसकर लाल नेत्रहें जिनके वे महा भयानक शब्द करतेभए बडी बेरतक संग्राम भयासो वरुणकी सेना रावणकी सेनासे कछु इक पीछे हटी तब अपनी सेनाको हटी देख वरुणराक्षसोंकी सेनापर आप चलाायाकालाग्नि समान भयानक तब गवण वरुणको दुर्निवारण भूमिमें सन्मुख आवता देखकर आप युद्ध करनेको उद्यमी भए बरुणके और गवणके आपसमें युद्ध होनेलगा और वरुणके पुत्र खरदुषणसे युद्ध करतेभए कैसे हैं वरुण के पुत्र महाभटोंक प्रलय करनेहारे और अनेक माते हाथियोंके कुम्भस्थल विदारनहारेसो रावण क्रोध
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