Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुराण
॥२८॥
पद्म संभाषण कर श्रानन्द रूप शीघ्र ही भावना तब आपका वित्त निश्चल होगा परमउत्साहरूपचलनाशत्रु
के जीतने का निश्चय यह ही उपाय है तब मुद्गरनामा सेनापति को कटक रक्षा सौंप कर मेरू की बंदना का । मिस कर प्रहस्त मित्र सहित गुप्त ही सुगंधादि सामग्री लेकर आकाश के मार्ग से चले । सूर्य भी अस्त होगया और सांझ का प्रकाश भी हो गया, निशा प्रकट भई अंजनी सुन्दरी के महल पर जाय पहुंचे पवनकुमोर तोबाहिर खडे रहे प्रहस्त खबर देने को भीतर गये दीप का मंद प्रकाश था अंजनी कहती भई कौन है बसंतमाला निकट ही सोती थी सो जगाई वह सब बातों में निपुण उठकर अंजनी का भय निवारण करती भई प्रहस्त ने नमस्कार कर जब पवनंजय के ओगम का वृत्तांत कहा, तब सुन्दरी ने प्राणनाथ का समागम स्वप्न समान जाना प्रहस्त को गदगद बाणी कर कहती भई हे प्रहस्त ! मैं पुण्यहीन पति की कृपाकर वर्जित मेरे ऐसा ही पाप कर्म का उदय आया तू हमसे क्या हंसे है पति से जिसकानिरादर होय उसकी कौन अवज्ञा न करें में अभागिनी दुःख अवस्था को प्राप्त भई कहांसे सुख अवस्था होय । तब प्रहस्त ने हाथ जोड़ नमस्कार कर विनती करी हे कल्याणरूपिणी हे पलिते हमारा अपराध क्षमा करो अब सब अशुभ कर्म गए तुम्हारे प्रेम रूप गुण को प्रेरा तेरा प्राणनाथ आया तुमसे अति प्रसन्नभया तिन की प्रसन्नता कर क्यों क्या अानन्द न होय जैसे चन्द्रमा के योग कर रात्रि की प्रतिमनोग्यताहोय तब अंजनी सुन्दरी क्षण एक नीची होय रही और बसंतमोला ने प्रहस्त सों कही हे भद्र ! मेघ वरसे जब हा भला इसलिये प्राणनाथ इसके महल पधारेंसो इनका बड़ाभाग्य और हमारा पुण्यरूप वृक्ष फला यह बात होय ही रहा थी आनन्द के अश्रुपातों कर व्याप्त हो गए हैं नेत्र जिनके सो कुमार पधारे ही मानों करुणारूप सखी
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