Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
॥२७
॥
| श्रादित्यपुरनगरहै रत्नोकर सूर्यसमान देदीप्यमानहै । वहां राजा प्रल्हाद महाभागी पुरुष चंद्रमा समान
कांति का धारी उसके गणी केतुमती कामकी ध्वजा उनकं वायुकुमार कहिये पवनंजय नामा पुत्र पराक्रम का समूह रूपवान शीलवान गुणनिधान सर्व कलाका पाग्गामी शुभशरीर महावीर खोटी चेष्टा से रहित उसके समस्तगुण सर्व लोकों के चित्त में व्याप रहे हैं हम सौ वर्ष में भी न कहसकें इसलिये आप ही उसे देख लो पवनंजय के ऐसे गुण सुन सर्वही हर्षको प्राप्त भए कैसा है पवनंजय देवों के समान है द्युति जिसकी जैसेनिशाकरकीकिरणोंकर कुमुदनी प्रफुल्लित होय तैसे कन्याभी यहवार्ता सुनकर प्रफुल्लितभई ॥ ___ अथानन्तरवसन्तऋतु आई स्त्रियोंके मुख कमल की लावण्यताकी हरणहारी शीतऋतु गई कमलिनी प्रफुल्लित भई नवीन कमलोंके समूह की सुगंध से दशों दिशा सुगंध भई कमलों परभ्रमर गुंजार करते भए कैसे हैंभ्रमर मकरन्द कहिए पुष्प की सुगन्धरज उसके अभिलाषी हैं वृक्षां के पल्लव पत्र पुष्पादि नवीन प्रगट भए मानों वसंत के लक्ष्मी के मिलाप से हर्ष के अंकुरे उपजे हैं और ग्राम मौल आए तिन पर भ्रमर भ्रमें हैं लोकौ के मन को कामवाण वींधते भए कोकिलावों के शब्द मानिनी नायिकावों के मान को मोचन करते भए बसंतसमयपरस्पर नर नारियों के स्नेह बढ़ताभया हिरण जो हैं सो दूबके अंकुरे उखाड़ हिरणी के मुख में देना भया सो उस को अमृत समान लगे अधिक प्रीती होती भई और वेल वृक्षों से लपटी, कैसी हैं बेलभ्रमर ही हैं नेत्र जिनके, दक्षिण दिशा की पवन चली सो सवही को सुहावनी लगी पवन के
प्रसंगसे केसर के समूह पड़े सो मानो वसंतरूपी सिंह के केशों के समूह ही हैं, महा सघन कौर वे जातिके |' जेवृक्ष तिनपर भ्रमरोंके समूह शब्दकरे हैं मानों वियोगिनी नायिकावोंके मनको खेद उपजावनेको बसंतो
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