Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म पुराण
४ २७9 ।।
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उसे देव सर्व विद्याधारोंका अधिपति उसका संबंध पाय तुम्हारा प्रभाव समुद्रांत पृथ्वीपर होगा अथवा इंद्रजीत तथा मेघनादको देवो और यह भी तुम्हारे मन में न यावे तो कन्याका स्वयंवर रचो ऐसा कहकर अमरसागर मंत्री तो चुप रहा तब सुमतिनामा मंत्री महा पंडित बोला रावण के तो स्त्री अनेक
महा अहंकारी इसे पहनावें तोभी अपने अधिक प्रीति न होय और कन्याकी वय छोटी और raata धिक सो बने नहीं इंद्रजीत तथा मेघनाद को परणव तो उन दोनों में परस्पर विरोध होय गे राजा श्रीषेणके पुत्रों में विरोध भया इस लिये यह न करना तब ताराधरायण मंत्री कहने लगा दक्षिणश्रेणि विषे कनकपुरनामा नगर है वहां राजा हिरण्यप्रभ उसके राणी सुमना पुत्र सौदामिनीप्रभ सो महा यशवन्त कांति धारी नव यौवन नववय अति सुंदररूप सर्व विद्याकलाका पार गामी लोकों को आनन्दकारी अनुपम गुण अपनी चेष्टासे हर्षित किया है सकल मंडल जिसने और ऐसा पराक्रमी है जो सर्व विद्याधर एकत्रहोय उससे लेंडे तो भी उसे न जीतें मानों शक्तिके समूह से निरमाया है । सो यह कन्या उसे दो जैसी कन्या तैसा बर योग्य सम्बन्ध है यह वार्ता सुन कर संदेहपरागनामा मंत्री माया धुनें आंख मीचकर कहता भया वह सौदामिनीप्रभ महा भव्य है उस के निरंतर यह विचार है कि यह संसार अनित्यै सो संसारका स्वरूप जान बरस अठारहमें वैराग्य धारेगा विषयाभिलाषी नहीं भोगरूप गज बन्धन तुड़ाय गृहस्थका त्याग करेगा वाह्याभ्यंतर परिग्रह परिहार कर केवलज्ञानको पायमोच जायगा सो उसेपरणावे तो कन्यापति बिना शोभा न पावे जैसे चंद्रमा बिना रात्री नीकी न दीखे कैसा है चंद्रमा जगतमें प्रकाश करनहारा है इस लिये तुम इंद्रके नगर समान
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