Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुराण
अपने अपने स्थानक गए रावणभी इन्द्रकीसी लीला धरेप्रबल पराक्रमी लंकाकीओर पयान करता भया
और आकाश के मार्ग शीघ्रही लंका में प्रवेश किया कैसाहै रावण समस्त नरनारियों के समूह से किया है गुण वरणन जिसका और कैसी है लंका वस्त्रादि कर बहुत समारी है रावण राजमहल में प्रवेश कर सुखसे तिष्ठतेभए राजमन्दिर सर्व सुखका भराहै। हेश्रेणिक पुण्याधिकारी जीवोंके जबशुभकर्मका उदयहोय है तब नानाप्रकारकी सामग्रीका विस्तार होयहै गुरुके मुखसे धर्मका उपदेश पाय परमपदके अधिकारी होय हैं ऐसा जान कर जिन श्रुति में उद्यमी है मन जिन का वे वारंवार निजपरका विचारकरधर्मका सेवन करें विनयकर जिन शास्त्र सुनने वालोंके जोज्ञानहै सो रविसमान प्रकाशको धरे है मोहतिमिर का नाश करे है
इति चौदहवां पर्व सम्पूर्णम्।। अथानन्तर उसही केवली के निकट हनुमान ने श्रावक के व्रत लिये और विभीषण ने भी बत | लिए भाव श्रुद्ध होय व्रत नियम आदरे जैसा सुमेरु पर्वत का स्थिरपना होय उससे अधिक हनूमान् का || शोल और सम्यक्त परम निश्चल प्रशंसा योग्य है जब गौतम स्वामी ने हनुमान का अत्यंय सौभाग्य
आदि वर्णन किया तब मगध देशके राजा श्रेणिक हर्षित होय गौतम स्वामी से पूछते भए।हे गणाधीश हनुमान कैसे लक्षणोंका धरणहारा कौन का पुत्र कहां उपजा में निश्चिय कर उसका चरित्र सुनना चाहूं
हूं तव सत्पुरुषों की कथा से जपजा है प्रमोद जिन को ऐसे इन्द्रभत कहिए गौतम स्वामी अल्हादकारी | बचनों से कहते भए हे नृप विजियाध पर्वत की दक्षिणश्रेणी पृथिवीसे दस योजन ऊंची तहां श्रादित्य
पुर नामा मनोहर नगर वहां राजा प्रहलाद राणी केतुमती तिन के पुत्र बायुकुमार जिस का विस्तीर्ण
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