Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पद्म
जब अगला देवखिर जाब तबनयीं देवउतपादिकशय्याविषे उपज है जैसे कोई मृता मनुष्यसेज से जान उठे तैसें चणमात्रमें देवउत्पादिक शय्या बिषे प्रकट होय हैं नवयोवनको प्राप्तभया कैसा है तिनका शरीर सात ।। २५६ ॥ उपधातु रहित निर्मल रजपसेव चौररोगों सेरहित सुगंध पवित्र कोमल परमशोभा युक्त नेत्रोंको प्यारा
पुराण
ऐसा उत्पादिक शुभवैन्कियक देवोंका शररि होमहे ये प्राणी धर्म से पावे हैं जिनके श्राभूषणमहा देदीप्यमान • तिनकी कांतिके समूहकर दशदिशा विषे उद्योत होरहा है औरतन देवनकेदेवांगना महासुन्दर हैं कमलों के पत्र समान सुन्दर हेंचरण जिनके और केले के थंभ समान हैं जंघा जिनकी कांचीदाम [तागडी]करथोमित सुन्दर कटि और नितंबजिनके जैसे गमों के घटोका शब्दहोय तैसे कांचीदाम की सुनघटिकाका शब्द होय है उगते चन्द्रमा से अधिक कांतिधरे है मनोहर हैं स्तनमंडल जिनका रखों के समूह से ज्योति को जीते और चांदमी को जीते ऐसी है प्रभा जिनकी मालतीफी जो माला उससे याति कोमल भुजलता है जिनकी महा अमोलिक बाचाल मशिवई चूट उनकर शोभित हैं हाथ जिनके और अशोकवृक्ष की कुंपल समान कोमल अरुण हैं हथेली जिनकी अति सुन्दर कश्की अंगुली शंख समान ग्रीवा कोकिल भीति मनोहर कर अति खोल अति सुन्दर रसके भरे घर उनकर श्राखादित कुन्दके पुष्प समान दन्त और निर्मल दपण समान सुन्दर हैं कपाल जिनके लावस्थता कर लिप्त भई हैं सर्वदिशा और अति सुन्दर तीक्षण कामके बाण समान नेत्र सो क्षेत्रों की कटाक्ष करण परयन्त प्राप्त भई हैं सोई मानो कर्णाभरण भए और पद्मराग मचि यादि अनेक गलियोंके आभूषण और मोतियोंके हार उनसे मंडित और अमर समान श्याम अति सूक्ष्म अति निम्मल प्रति चिकने अति सघन वक्रता घरे लम्बे केश
For Private and Personal Use Only