Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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देखा उसमें से एक दीनार कौतूहलकर लीनी और दूजा कांचन है नाम जिसका ताने सर्व बटुवाही उठाय पुराण | लिया सो दीनार को स्वामी राजा उसने बटवा उठवावतादेख कांचन को पिटाया और गाम में से क ढ़ाया और भद्रने एक दीनार लीनीथी सो राजाको बिना मांगे स्वमेव सौंप दीनी राजा ने भद्रका बहुत सन्मान किया ऐसा जानकर बहुत तृष्णा न करनी संतोष धरना ये पांच अणुव्रत कहे और चार दिशा चार विदिशा एक घः एक ऊर्ध इन दश दिशाका परमाण करना कि इसदिशाको एतीदूर जाऊंगा । आगे न जाऊं फिर अफ्यान कहिये खोटा चितवन पापोपदेश कहिये अशुभ कार्य का उपदेश हिंसा दान कहिये विष फांसी लोहा सीसा खडगादि शस्त्र तथा चाबुक इत्यादि जीवनके मारने के उपकरण तथा जे जाल रस्सा इत्यादि बन्धनके उपाय तिनका व्यापार और श्वान मार्जार चीतादिकका पालना और कुश्रुतिश्रवण कहिये कुशास्त्रका श्रवण प्रमादचर्या कहिये प्रमादसे वृथा छै कायके जीवों की बाधा करनी ये पांचप्रकारके अनर्थ दण्ड तजने और भोगकहिये श्राहारादिक उपभोग कहिये स्त्री वस्त्राभूषणादिक तिन का प्रमाण करना अर्थात् उसमें यह विचार जे अभक्ष्य भक्ष्यणादि परदारा सेवनादि अयोग्य विषयहैं तिन का तो सर्वथा त्याग और जे योग्याहार तथा स्वदारासेवनादि तिनका नियमरूप प्रमाण यह भोगोपभोम परिसंख्या कहिये ये तीन गुणव्रत कहे और समायिक कहिये समताभाव पंचपरमेष्ठी और जिनधर्म जिनवचन जिनप्रतिमा जिनमन्दिर तिनका स्तंबन और सर्व जीवोंसे क्षमाभावसो प्रभात मध्यान्ह सायंकाल छैछै घड़ी तथा चार २ घड़ी तथा दोदो घड़ी अवश्य करना और प्रोषधोपवास कहिये दो आठे दो चौदस एकमासमें चार उपवास षोड़श पहर के पोसे संयुक्त अवश्य करने सोलह पहरतक संसारके कार्यका त्यागकरना आत्मचिंतन
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