Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
पुराण
॥२६॥
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के धरनहारे सौधर्मादि स्वर्गविषे ऐसे भोग पावे जो मनुष्यों को दुरलभ हैं और देवोंसे मनुष्य होय सिद्ध पद पावें हैं कैसे मनुष्यहोंयचक्रवर्ति कामदेव, बलदेव, महा मण्डलीक महाराजाधिराज महा विभूति के धनी, महागुणवान उदारचित्त दीरघायु सुन्दररूप जिनधर्म के मर्मी जगत्के हितु अनेक नगर ग्रामादिकों के अधिपति नाना प्रकारके वाहनोंकर मण्डित सर्व लोक के वल्लभ अनेक सामन्तों के स्वामी दुस्सह तेज के धारनहारे ऐसे राजा होय हैं अथवा राजावों के मन्त्री पुरोहित सेनापति राजश्रेष्ठी तथा श्रेष्ठ बड़े उमराव महा सामन्त मनुष्यों में यह पद रात्री भोजन के त्यागी पावे हैं देवोंके इन्द्र भवन वासियों के इन्द्र चक्रके धनी मनुष्यों के इन्द्र महालक्षणों कर सम्पूर्ण दिन भोजी होय हैं सूर्य सारिखे प्रतापी चन्द्रमा सारिखे सौम्यदर्शन अस्त को प्राप्त न होय प्रताप जिनका देवों समान भोग जिनके ऐसे तेई होवेंगे जो सूर्य अस्त भए पीछे भोजन न करें और स्त्री रात्री भोजनके पाप से माता पिता भाई कुटम्बरहित अनाथ कहिये पति रहित भागिनी शोक दलिद कर पूर्ण रूक्षे फटे धर हस्त पादादि सुका शरीर चिपटी नासिका जो देखे सो ग्लानि करे दुष्ट लक्षण बुरी, मांजरी, यांधी, लूली, गूंगी, बहरी, बावरी, कानी, चीपड़ी दुरगंध स्थूल घर खोटे कणं भूरे ऊंचे बुरे सिरके केश तूंबड़ी के बीज समान दांत कुवरण कुलक्षण कांति रहित कठोर अंग अनेक रोगों की भरी मलिन फटे वस्त्र उच्छिष्ट की भक्षणहारी पराई मंजूरी करणहारी नारी होय है रात्रि भोजनकी करणहारी नारी जो पति पावे तो कुरूप कुशील कोढ़ी बुरे कान बुरा नाक बुरी आंखें चिंतावान घन कुटंब रहित ऐसा पावें रात्री भोजन से विवा बालविधवा महादुखवन्ती जल काष्ठादिक भार के बहनहारी देख कर भरे है उदर जिसका सर्व
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