Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म पुराण ॥२५॥
तीन गुप्ति के धरनहारे, निर्मलचित्त महापुरुष परमदयालु निजदेह मेंभी निर्ममत्व रागभाव रहित जहां सूर्य अस्त होय वहां ही बैठ रहें कोई आश्रय नहीं तिनके कहापरिग्रह होय पाप का उपजावनहारा जो परिग्रह सो तिनके वालके अग्रभाग मात्रभी नहीं, वे महाधीर महामुनिसिंह समान साहसी समस्त प्रबन्ध रहित पवनसारिखे असंगी तिनके रुञ्चमात्र भी संग नहीं पृथिवी समान क्षमा, जल
सारिखे विमल अग्नि सारिखे कर्मको भस्म कर आकाश सारिखे अलिप्त सर्व सम्बन्ध रहित प्रशंसा योग्य | है चेष्टा जिनकी चन्द्र सारिखे सौम्य सूर्य सारिखे तिमिर हरता समुद्र सारिखे गम्भीर पर्वत सारिखे अचल कछुवा समान इन्द्रीयों के संकोचनहारे कषायोंकी तीव्रता रहित अठाईस मूलगुण चौरासीलाख उत्तर गुणों के धारणहारे अठारह हजार शीलके भेद तिनके घारक तपोनिधि मोक्षगामी जिन धर्ममें लवलीन जिन शास्त्रोंके पारगामी और सांख्य पातञ्जल बौद्ध मीमांसक नैयायिक वैशेषिक वेदान्ती इत्यादि पर शास्त्रोंके भी वेत्ता महा बुद्धिमान सम्यग्दृष्टि यावज्जीव पोप के त्यागी यम नियम के धारनहारे परम संयमी परम शान्त परम त्यागी निगर्व अनेक ऋद्धि संयुक्त महामङ्गलमूर्ति जगत्के मण्डन महागुणवान् केईएक तो उसही भवमें कर्मकाट सिद्धहोय कईएक उत्तम देव होय दो तीन भवमें ध्यानाग्निकर समस्त कर्म काष्ठ बाल अविनाशी सुखको प्राप्त होय हैं यह यतीका धर्म कहो अब स्नेहरूपी पीजरे में पड़े जे गृहस्थी तिनका द्वादशत्रत रूप जो धर्म सो सुनो पांच अणुव्रत तीन गुणव्रत चार शिक्षाबत और अपनीशक्ति प्रमाण हजारों नियम त्रस घात का त्याग और मृपावादका परिहार परधन का त्याग परदारा परित्याग और परिग्रह का परिणाम तृष्णाका त्याग ये पांच अणुव्रत और हिंसाका प्रमाण देशोंका प्रमाण जहां जिनधर्म का उद्योत
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