Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
॥२५॥
कोमल शरीर अति मधुर स्वर अत्यन्त चतुर सर्वउपचारकी जाननहारी महा सौभाग्यवती रूपवती गुणवती मनोहर क्रीड़ाकीकरणहारीनंदनादि वनों से उपजी जो सुगन्ध उससे अति सुगन्ध हैं श्वास जिनकेपराये मनका अभिप्राय चेष्टामें जान जाय ऐसी प्रवीण पंचेन्द्रियों के सुखकी उपजावनहारी मनवांछित रूपकी धरणहारी ऐसी स्वर्ग में जे अप्सरा वह धर्म के फल से पाइये हैं और जोइच्छा करें सो चितवत मात्र सर्व सिद्धि होंय इच्छा करेंसोही उपकरणप्राप्त होंय जोचाहें सो सदा संग ही हैं देवांगनावों कर देव मनवांछित सुख भोगे हैं जो देवलोक में सुख हैं तथा मनुष्य लोक में चक्रवर्त्यादिक के सुख हैं सो सर्वधर्म का फल जिनेश्वर देव ने कहा है, और तीन लोक में जो सुख ऐसा नाम धरावे है सो सर्वधर्म से उत्पन्न होय है जे तीर्थंकर तथा चक्रवर्ति बलभद्र कामदेवादि दाता भोक्ता मर्यादाके कर्ता निरन्तर हज़ारोंराजावों तथा देवों कर सेइये हैं सो सर्व धर्म को फल है। और जो इन्द्र स्वर्ग लोकका रोज्य हज़ारों जे देव मनोहर श्राभूषण के धरणहारे तिनका प्रभुत्व धरे हैं सो सर्वधर्म का फल है, यह तो सकल शुभोपयोगरूपव्यबहारधर्म के फल कहे औरजे महामुनि निश्चयसे रत्नत्रयके धरणहारे मोहरिपुका नाशकर सिद्धपदपाये हैं सोशुद्धोपयोगरूप आत्मीक धर्मका फल है सो मुनिकाधर्म मनुष्य जन्मबिना नहींपाइये है, इसलियेमनुष्यदेहसर्वजन्मविषे श्रेष्ठ है, जैसेमृगकहियेवनकेजीव तिनमेंसिंहौरपक्षियोंमेंगरुड़ और मनुष्योमेंराजा, देवोंमेंइन्द्र तृणोंमेंशालि बृक्षों में चन्दन और पाषाणों में रत्न श्रेष्ठ हैं तैसे सकल योनियों में मनुष्यजन्म श्रेष्ठ है तीनलोकमें धर्म सार है
और धर्म में मुनि का धर्म सार है। सो मुनि का धर्म मनुष्यदेह से ही होय है इसलिये मनुष्य समान और नहीं। अनन्तकाल यह नीव परिभ्रमण करे है उस में मनुष्यजन्म कब ही पावे है यह देह महादुर्लभ है । ऐसे
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