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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चावल लिया तब परालका क्या काम जय रावणने ऐसा कहा तब इन्द्रजीत पिताकी मात्रा से पीछे बाहुडा और सर्व देवों की सेना शरदके मेघसमान भागगई जैसे पपनकर शरदके मेघ विलयजाय रावण की सेना में जीतके वादिव बाजे ढोल नगारे शंख झांस इत्यादि अनेक वादितों का शब्द भया इंद्र को पकडा देख रावणका सेना प्रति हर्षितभई रावण लंका में चलनेको उद्यमी भया सूयके स्थ समान रय ध्वजावों से शोभित और चंचल तुरज नृत्य करते हुए और मद झरते हुए नाद करते हाथी तिन पर भ्रमर गुंजार करे हैं इत्यादि महासेना से मंडित राक्षसों का अधिपति रावण लंका के समीप आया तब समस्त बन्ध जन और नगरके रक्षक तथा पुरजन सपही दर्शनके अभिलाषी भेट लेले सन्मुख आए और रावण की पूजा करते भए, जे बड़े हैं तिनकी रावण ने पूजा करी रावण को सकल नमस्कार करते भए और बड़ों को रावण नमस्कार करता भया कैयकों को कृपा दृष्टि से कैयकों को मंदहास्य से कैयकों को वचनों से रावण प्रसन्न करता भया बुद्धिके बल से जाना है सबका अभिप्राय जिसनेलंका तो सदाही मनोहर है परन्तु रावण बड़ी बिजय कर पाया इसलिये अधिक समारीहै ऊंचे रत्नों के तोरण निरमापे मंद मंद पवन कर अनेक वर्ण की ध्वजा फरहरे हैं कुंकुमादि सुगंध मनोज्ञ जल कर सींचा है समस्त पृथिवीतल जहां और सब ऋतु के फूलों से पूरित है राजमार्ग जहांऔर पंचवर्ण रत्नोंके चूर्ण कर रचे हैं मंगलके मंडन जहां और दरवाजयों पर थांभे है पूर्ण कलश कमलोंके पत्र और पल्लब सेढ़के, संपूर्ण नगरी वस्त्राभरण कर शोभित है जैसे देवों में मंडित इंद्र अमरावती में श्राबे तैसे विद्याधरों कर वेढा रावण लंका में आया पुष्पक विमान में बैठा देदीप्यमानहै मुकट जिसको महारत्नोंके बाजूबंदपहिरे निर्मल प्रभाकर युक्त मोतियों For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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